मेरी एक मित्र हैं कैथरीन. जीवन के
सत्तर साल पूरे कर चुकने के बाद भी उनमें इस कदर जीवन्तता है! कैथरीन से मेरी
दोस्ती कोई पन्द्रह साल पुरानी है. इतने ही सालों से वे साल में दो दफा भारत आती
हैं और उत्तराखंड के एक कस्बेनुमा गाँव कौसानी में आधा साल बिताती हैं. जब मेरी
उनसे पहली भेंट हुई थी, वे अपनी पेंटिंग्स पर काम कर रही थीं. यह तो मुझे बाद में
कभी उन्होंने बताया कि वे एक प्रशिक्षित वास्तुशिल्पी हैं और एरिक साटी जैसे मुश्किल
संगीतकार के संग्रहालय को डिजाइन कर चुकी हैं.
बाद में कैथरीन ने कौसानी से थोड़ी
दूर दिगोली नाम के बेनाम से गाँव में जाना शुरू किया जहां उनके नए नए परिचित बने
रश्मि और रजनीश ‘अवनि’ नाम की संस्था का सञ्चालन कर रहे थे – तब वे सौर ऊर्जा पर काम
कर रहे थे और उसके बाद वहीं दिगोली और उसके आसपास के गाँवों में मूगा रेशम का
उत्पादन उन्होंने चालू किया.
पिछले पांच सालों से कैथरीन ने ‘अवनि’
की वजह से गाँव के आम लोगों के जीवन पर पड़े गुणात्मक प्रभाव को देखकर फिल्म बनाने
का फैसला किया.
फ्रेंच-स्विस मूल की कैथरीन अभी हाल
ही में तीन-चार दिन मेरे घर हल्द्वानी में बिताकर क्रिसमस के लिए घर लौटी हैं. ‘अवनि’
में काम करने वाली एक लड़की हेमा की ज़िन्दगी के इर्द गिर्द घूमती यह फिल्म संयुक्त
राष्ट्र संघ द्वारा पुरुस्कृत की जा चुकी है. दो-तीन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म
समारोहों में भी इसकी स्क्रीनिंग हुई है. चीन की सरकार ने इस फिल्म के लिए उन्हें ‘वूमेन
लीडर ऑफ़ द इयर’ के सम्मान से नवाज़ा.
कैथरीन के हल्द्वानी होने का मैंने
यह फायदा उठाया कि तीन जगह फिल्म के शोज़ करवा दिए. और दर्शकों की प्रतिक्रया बेहद
उत्साहजनक थी.
‘अ चॉइस इन द हिमालयाज़’ को जल्द ही
यूट्यूब पर डालने का जतन करता हूँ ताकि इस शानदार डॉक्यूमेंट्री को ज्यादा से
ज्यादा लोग देख सकें.
3 comments:
जो उम्दा काम कैथरीन ने किया है उससे हम कुछ प्रेरणा लें !
ऐसे लोगो का आयात क्यों करना पड़ता है। क्या इनका स्थानीय उत्पादन नहीं हो सकता।
अब हमारी उत्सुकता और भी बढ़ गयी है।
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