Monday, April 28, 2014

गाने चलो, वरना थाने चलो - हबीब जालिब और उनकी शायरी – 7

लोकतंत्र में समाजवाद को जज़्ब करने के वायदे के साथ भुट्टो सत्ता पर काबिज़ हुए थे. जालिब भुट्टो के अच्छे दोस्त थे और भुट्टो को वाम-लोकतांत्रिक समझा जाता था. उस समय पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का नारा कुछ इस तरह था – “इस्लाम हमारा धर्म है, लोकतंत्र हमारी नीति, समाजवाद हमारी अर्थव्यवस्था. सारी सत्ता जनता की.” राष्ट्रपति के रूप में भुट्टो ने एक ऐसे पाकिस्तान का वायदा किया था जो “शोषणमुक्त” होगा. उन्होंने सारे उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया, भूमि-सुधार के प्रयास शुरू किये,  ट्रेड यूनियनों को उनके हक़ दिलाए, सेना की ताकत कम कर दी, मार्शल लॉ को अवैध घोषित किया और नया संविधान लिखने की तैयारी शुरू कर दी.
इस संविधान को १९७३ में स्वीकार किया गया. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भुट्टो ने अमेरिका पर पाकिस्तान की निर्भरता को कम करने के इरादे से रूस के साथ सम्बन्ध बनाने शुरू किये. सोवियत सहायता के रूप में पाकिस्तान को तकनीकी सलाह औए स्टील प्लांट मिले. एक चतुर राजनेता के तौर पर भुट्टो ने अपनी आन्तरिक स्थिति को सुदृढ़ करना शुरू किया. उन्हें पता था कि जालिब का साथ उन्हें मज़बूत करेगा. एक बार एक सभा के दौरान भुट्टो ने जालिब से कहा कि वे उनकी पार्टी के सदस्य बन जाएं. जालिब ने जवाब दिया – “क्या आपने कभी सुना है कि समुन्दर नदियों में गिरते हैं?” यह उस दौर की बात है जब भुट्टो अपनी सफलता के चरम पर सवार थे.
एक बार फिर से ईरान के शाह का आगमन हुआ और एक प्रहसन के तौर पर इतिहास ने अपने आप को दोहराया. इस बार शाह भुट्टो के लरकाना स्थित पैतृक घर पर व्यक्तिगत मेहमान की तौर पर रहे. एक और अभिनेत्री को शाह के सामने नाचने को कहा गया. इस से सारे पाकिस्तान में वबाल उठ खड़ा हुआ. ऐसे में जालिब ने लिखा-
“लरकाने चलो,
वरना थाने चलो
अपने होठों की लाली लुटाने चलो
वरना थाने चलो
गाने चलो
वरना थाने चलो

ये मेरे जो वज़ीर हैं
ये सभी बेज़मीर हैं.”

(जारी)

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

आज बहुत कुछ है सुंदर :)