शेर
बचाओ (अभियान)
-हरीशचन्द्र पाण्डे
ब्रह्माण्ड
– सा सिर
दुर्भेद्य
पुतलियाँ
बदन
से पौरुष के झरने बहते
जो
अनुपम है उसे बचाया ही जाना चाहिए
चलना
भी कला
थामना
भी
पीठ
पीछे क्या हो रहा है
मुड़
कर अवलोकन करना भी कला
ऐसे
कलावंत को बचाया ही जाना चाहिए
चले
तो चिन्ह छोड़ जाए
जो
इरादों को टोह ले दुश्मन के
सूड़धारियों
के होते हुए जो ख़ुद सम्राट बन जाए
ऐसे
अक़ील को बचाया ही जाना चाहिए
जो
गरजे तो दहल जाए दुनिया
जो
चीरे तो चिथड़ा-चिथड़ा हो जाए जिस्म
जिसे
देखते ही सुन्दरता भय में तब्दील हो जाए
जो
दुर्लभ हो अपनी निरंकुशता और क्रूरता में
ऐसी
दुर्लभता को बचाया ही जाना चाहिए
जंगल
में रह कर जो कभी न देखे घास की ओर
जिसे
रोज़ चाहिए एक नया शिकार
जो
डकार जाए जंगल की सबसे बड़ी छलांग
जिसके
विरुद्ध मुक़दमे कभी नहीं पहुँचते किसी निर्णय तक
ऐसे
कूट को बचाया ही जाना चाहिए
बचाया
ही जाना चाहिए
1 comment:
सुंदर !
Post a Comment