Thursday, April 10, 2014

उसकी ‘हां’ पर मत जाना कभी

तानाशाह

-हरीशचन्द्र पाण्डे

सुबह खून की सुर्ख़ियों में धोता है वह अपना मुंह
उसके बूटों की चर्र चर्र
उसमें दमन की वाद्यता भारती है

उसके हन्टर की नोक जहां गिरती है नक़्शे में
वहाँ वनस्पतियों का उगना बंद हो जाया करता है

उसका विवेक फांसी के लीवर की तरह होता है
उसकी ‘ना’ एक पुल ध्वस्त करती है

उसकी ‘हां’ पर मत जाना कभी
जिस रात वह अपनी प्रेमिका को सल्तनत देने की
पेशकश करता है
उसकी प्रेमिका
दुनिया की सबसे भयभीत औरत होती है


उसकी मौत एक दर्रा होती है