औरतें
घर में रहेंगी
लड़कियां छिप जायेंगी
फूल शाखों पर खिलेंगे
और वहीं मुरझायेंगे
चांद सूरज और सितारे
धुंध में खो जायेंगे
दूर तक उड़ते परिन्दे
गीत गाना भूलकर
अपने अपने आशियां में
ख़ौफ़ से मर जायेंगे
ख़्वाब जैसी जिंदगी के
ख़्वाब देखेंगे मगर
सुब्ह जब फैलेगी घर में
रेडियो खोलेंगे लोग
और खिड़की से अचानक
तालिबान आ जायेंगे।
लड़कियां छिप जायेंगी
फूल शाखों पर खिलेंगे
और वहीं मुरझायेंगे
चांद सूरज और सितारे
धुंध में खो जायेंगे
दूर तक उड़ते परिन्दे
गीत गाना भूलकर
अपने अपने आशियां में
ख़ौफ़ से मर जायेंगे
ख़्वाब जैसी जिंदगी के
ख़्वाब देखेंगे मगर
सुब्ह जब फैलेगी घर में
रेडियो खोलेंगे लोग
और खिड़की से अचानक
तालिबान आ जायेंगे।
- ज़ीशान साहिल
(पाकिस्तान का एक जिद्दी शायर जिसकी मौत दौ वर्ष पूर्व हुई)
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पहल 94 से साभार
1 comment:
कविता भी जिद्दी हो गई इसीलिये अंत में :)
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