Thursday, April 24, 2014

बल्ली सिंह चीमा के लिए एक नज़्म


नैनीताल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे मेरे अज़ीज़ मित्र और जनकवि बल्ली सिंह चीमा को आचारसंहिता तोड़ने के आरोप में चौदह दिन को जेल में भेज दिया गया है. जिन हास्यास्पद से लगने वाले आरोपों के चलते यह कार्रवाई की गयी है उनके विवरण देना मैं ज़रूरी नहीं समझता.

सामान्य आचारसंहिता के हिसाब से चला जाय तो मुझे लगता है हमारा सारा देश ही अवैध और गैरकानूनी है तब भी यदा-कदा एक आदमी से क्यों डर जाता होगा हमारा शासन?

उर्दू के एक बड़े शायर मजीद अहमद (१९१४-१९७४) की एक नज़्म याद आ रही है.   

एक आदमी

-मजीद अहमद

इतने कड़े वसीअ निजाम में सिर्फ़ एक मेरी ही नेकी से क्या होता है
मैं तो इससे ज़्यादा कर ही क्या सकता हूँ
मेज़ पर अपनी सारी दुनिया : काग़ज़ और क़लम और टूटी फूटी नज़्में
सारी चीज़ें बड़े करीने से रख दी हैं
दिल में भरी हुई हैं इतनी अच्छी-अच्छी बातें –
उन बातों का ध्यान आता है तो ये सांस बड़ी ही बेशबहा लगती है
मुझको भी तो कैसी-कैसी बातों से राहत मिलती है
मुझको इस राह में सादिक़ पा कर
सारे झूठ मेरी तसदीक़ को आ जाते हैं
एक अगर मैं सच्चा होता
मेरी इस दुनिया में जितने क़रीने सजे हुए हैं
उनकी जगह बेतरतीबी से पड़े हुए, कुछ टुकड़े होते
मेरे जिस्म के टुकड़े, काले झूठ के इस चलते आरे के नीचे!
इतने बड़े निज़ाम से मेरी नेकी टकरा सकती थी
अगर इक मैं ही सच्चा होता!

(वसीअ – फैला हुआ, निज़ाम – सत्ता, बेशबहा – बेशकीमती, तसदीक़ –पुष्टि)  
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बल्ली भाई का फ़ोटो ‘इण्डिया टुडे’ से साभार 

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

आपकी बात से पूरी तरह सहमत ।