Thursday, April 24, 2014

ताद्यूश रूज़ेविच नहीं रहे

पोलैंड के विश्वप्रसिद्ध कवित्रई के अंतिम स्तम्भ ताद्यूश रूज़ेविच (९ अक्टूबर १९२१- २४ अप्रैल २०१४) ने आज इस संसार को अलविदा कह दिया. चेस्वाव मीवोश और विस्वावा शिम्बोर्स्का के बाद अब उनके जाने से पोलैंड और विश्व साहित्य को हुई क्षति का पूरा पूरा अनुमान लगाने में जो भी वक्त लगे, यह तय है कि इनके कार्य ने विश्व साहित्य को कितना समृद्ध किया, इस पर आने वाली कई-कई पीढ़ियों में कोई मतान्तर नहीं होगा. शर्तिया!

उन्हें कबाड़खाने की श्रद्धांजलि के साथ प्रस्तुत है श्री मंगलेश डबराल द्वारा किया गया उनकी एक कविता का हिन्दी अनुवाद –



जो होता है
यह हो चुका है
और यह होता रहेगा
और यह फिर होगा
अगर इसे रोकने के लिए कुछ नहीं होता
मासूम कुछ नहीं जानते
क्योंकि वे बहुत मासूम हैं
और अपराधी कुछ नहीं जानते
क्योंकि वे बहुत अपराधी हैं
ग़रीबों को कुछ ध्यान नहीं रहता
क्योंकि वे काफी ग़रीब हैं
और अमीरों को कुछ ध्यान नहीं रहता
क्योंकि वे काफ़ी अमीर हैं
बेवक़ूफ़ अपने कंधे उचकाते हैं
क्योंकि वे बहुत बेवक़ूफ़ हैं
और चालाक अपने कंधे उचकाते हैं
क्योंकि वे बहुत चालाक हैं
जवानों को कोई परवाह नहीं
क्योंकि वे काफ़ी जवान हैं
और बूढों को कोई परवाह नहीं
क्योंकि वे काफ़ी बूढ़े हैं
यही वजह है कि
यह सब रोकने के लिए कुछ नहीं होता
और यही वजह है कि यह सब हो चुका है
और होता रहेगा और फिर से होगा.

No comments: