महान
दिग्दर्शक सत्यजित रे के कुछ कथन-
“ऐसी आयु में जब बंगाल का युवा अवश्यम्भावी रूप से कविता लिखता है, मैं पाश्चात्य शास्त्रीय
संगीत सुन रहा था.”
“अगर
आपकी विषयवस्तु साधारण है तो आप सैकड़ों ऐसे विवरणों के लिए जगह निकाल सकते है जो वास्तविकता
के इल्यूज़न को बेहतर तरीक़े से रच सकते हैं.”
“मैंने
कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मेरी फ़िल्में, ख़ास तौर पास ‘पाथेर पांचाली’ इस पूरे
देश में बल्कि दूसरे देशों में भी देखी
जाएगी. यह तथ्य है कि अगर आप सार्वभौमिक भावनाओं, संबंधों, संवेदनाओं और पात्रों
को दिखा पाने में कामयाब होते हैं तो आप कई बाधाओं को पारकर दूसरों तक पहुँच सकते
हैं, गैर-बंगालियों तक भी.”
“हाँ
आख़िरी में सबसे ज़रूरी बात – आपका अंत सुखद होना चाहिए – हैप्पी एन्डिंग. अलबत्ता
आप त्रासद परिस्थियों का निर्माण कर सकते हैं और हैप्पी एन्डिंग से पहले कुछ आंसू
बहाए जा सकें तो और भी अच्छा.”
आज उनकी जन्मतिथि है. उन्हें याद करते हुए उनकी फिल्म 'चारुलता' से मेरा पसंदीदा गीत किशोर कुमार के स्वर में-
1 comment:
Bahut achha.
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