Monday, July 14, 2014

इसे जानकर किसी भी नागरिक का सर शर्म से झुक जाएगा

अग्रज कवि और शानदार कवि-अध्येता जनाब असद ज़ैदी ने मेरी फेसबुक वॉल पर यह जानकारी निम्नलिखित टिप्पणी के साथ शेयर की है. बात शर्म की है और आप कम से कम अपने अपने स्तर परअपना विरोध तो दर्ज करवा ही सकते हैं.

महरुद्दीन ख़ाँ मेरे पुराने दोस्त हैं. वह मशहूर लेखक हैं और काफ़ी समय तक (राजेन्द्र माथुर काल से) नवभारत टाइम्स में ग्रामीण मामलों के सम्पादक भी रह चुके हैं. उनके साथ जो बीत रही है उसे जानकर किसी भी नागरिक का सर शर्म से झुक जाएगा. कृपया इसे पढ़ें और जो कुछ कर सकते हैं करें.” – असद ज़ैदी

महरुद्दीन ख़ाँ 
काफी सोच विचार के बाद तय किया कि जो हमारे परिवार के साथ हो रहा है सब लिख ही दिया जाए. अब लग यही रहा है की गांव छोड़ना ही पड़ेगा क्योंकि गांव के कुछ साम्प्रदायिक और अपराधी तत्वों ने घोषणा कर दी है कि उन्हें इस गांव में मुसमान का रहना पसंद नहीं. पहले ये लोग छेड़ छाड़ करते रहते थे तो गांव के लोग इन्हें डांट देते थे. दो साल पहले इनके लीडर संजय ने छोटे भाई पर गोली चला दी. गांव के लोगों ने ये मामला भी फैसला कर दिया और गारंटी ली कि भविष्य में कुछ नहीं होगा. सब ठीक चल रहा था कि पहली जुलाई को संजय और उसके साथी ने मेरे बड़े भाई के लड़के को दो गोलियां मार दीं जो ग़ाज़ियाबाद के यशोदा अस्पताल में ज़िंदगी के लिए संघर्ष कर रहा है . हम तीन भाइयों का परिवार भयभीत हो गया पुलिस से सुरक्षा मांगी आश्वाशन तो मिला मगर सुरक्षा नहीं मिली. 

सात जुलाई को दादरी थाने जाकर सुरक्षा की गुहार लगाई मगर पुलिस ने कुछ नहीं किया तो बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हुए कि इसी दिन तीन बजे बड़े भाई की गोली मार कर हत्या कर दी. मैंने कुछ मित्रों को बताया तो वे भी सक्रिय हुए. श्री शम्भू नाथ शुक्ल ने सक्रियता दिखाई और लखनऊ सम्पर्क किया तो पुलिस ने हमारी सुरक्षा का प्रबंध किया. इसके लिए मै शुक्ल जी का आभारी हूँ. 

इन दोनों घटनाओं की नामजद रपट दर्ज है मगर पुलिस छः नामजद में से किसी को नहीं पकड़ पाई है जिससे परिवार परेशान है. उधर बदमाश धमकी दे रहे हैं की या तो ये लोग गांव छोड़ दें वरना सब को निपटा दिया जायेगा. 

गांव में किसी से हमारी कोई रंजिश कभी नहीं रही.एक पुलिस अधिकारी का कहना है की नौकरी के 15 सालों में ये पहली घटना है कि बिना किसी रंजिश के बदमाश चुप चाप आते हैं और बिना कुछ कहे गोली मार कर चले जाते हैं. 


छह सात बदमाशों के इस गिरोह से अब गॉव वाले भी डरने लगे हैं. अपना दुःख दोस्तों में बाँटने के लिए ये सब लिख दिया वरना तो किसी काम में मन नहीं लगता. जिस गांव के लिए बहुत कुछ किया, जिस गांव के मोह में पड़कर शहर नही गया ,जिस गांव की खातिर कई संकट झेले और जिस गांव का खमीर यहीं खाक करना था अब पता नहीं कब ये गांव छोड़ना पड़ जाए वैसे दो भतीजे गांव से पलायन कर गए हैं. बदमाशों ने अब मेरा और मेरे बेटों का नंबर लगा दिया बताया है. 

अंत में आप सभी से अनुरोध है कि इस मामले में जो भी मदद आप कर सकें अवश्य करें. आभारी हूँगा.

4 comments:

अफ़लातून said...

इनके गांव का पता बतायें ।

hillwani said...

ये भयानक है. किसी के साथ भी ये आतंक हो सकता है. पत्रकार संगठनों और साहित्य संगठनों और अन्य बुद्धिजीवियों, एक्टिविस्टों को फ़ौरन हरकत में आना होगा. क्या यूपी सरकार और केंद्र के नाम ज्ञापन गए होंगे. एक बहुत बड़ा सामूहिक हस्ताक्षर अभियान देश भर में बनाना चाहिए इस गुंडा आतंकवाद के विरोध में.

शिवप्रसाद जोशी

सुशील कुमार जोशी said...

शर्मनाक ।

शेष said...

...और हम कहते हैं कि हमारा लोकतंत्र सबसे खास है...!!!

http://timesofindia.indiatimes.com/city/noida/In-Greater-Noida-fear-grips-the-Khans/articleshow/38513870.cms

In Greater Noida, fear grips the Khans
Vandana Keelor,TNN | Jul 17, 2014, 04.53 AM IST


GREATER NOIDA: Till the end of last month, 23 members of the Khan family lived in one house at Badpura village in Greater Noida, barely 50 km from Delhi. The Khans have been in the village for three generations, almost a hundred years.

But in just about two weeks, 15 of the Khans have fled, one lies in hospital recuperating from serious bullet injuries, and another is dead, shot. The six who remain are planning to flee too. A lorry stands outside the house, with goods being loaded for that long journey to some undisclosed location.

The Khans want to get out of Badpura as soon as possible, wiping out forever their nearly century-long association with the village. Police say an old personal enmity is playing out, but the Khans say they are being selectively targeted by some with clout and political backing who want them to leave the village.

"The problem," said 70-year-old Maheruddin Khan, "began in March 2011, when my youngest brother, Akheel Ahmed, was shot outside our home by a village neighbour." An FIR was lodged and the accused arrested. But on the advice of village elders, we settled the matter and he was released. Then, about six months ago, the miscreant again misbehaved with some people from our community. Again, his parents begged us to forgive him, which we did." Ramey Bhati, former headman of Badpura, confirmed Khan's account.

But on July 1, Sanjay, the main accused, along with some accomplices, shot 32-year-old Ikramudin in the head and stomach. He survived after a stint in the ICU. An FIR was lodged but the accused remained at large.

The elders approached Badalpur PS on July 6, but to no avail. "On July 7, we again approached Dadri police station. The same evening, 73-year-old Md Haneef was shot dead by Sanjay and his accomplice," Khan said.

A little too late, gunners of the Provincial Armed Constabulary (PAC) have now been deployed as security by Preetinder Singh, SSP, Dadri. He said "Inspector Ashok Kr Sharma of Badalpur PS, who failed to lodge the July 6 complaint, has been put on compulsory waiting."

The victims have written to Union home minister Rajnath Singh, UP chief minister Akhilesh Yadav, the national minority commission and human rights groups for help. "Ruling party politicians are behind the miscreants," Khan alleged. "After Haneef's murder, police had detained family members of one of the accused, but he was released after an influential SP leader pressured the cops," he alleged.

On Wednesday, Sanjay, the main accused, surrendered at a chief judicial magistrate's court. "We are raiding several places for the rest," said Brijesh Kumar Singh, SP, Greater Noida. "We'll make arrests soon," he added.