Tuesday, August 12, 2014

तकदीर तेरे क़दमों में होगी और तू मुकद्दर का बादशाह होगा - कादर ख़ान का एक लंबा साक्षात्कार – अंतिम क़िस्त


कॉनी हाम – आजकल क्या कर रहे हैं?

कादर ख़ान –मैं किताबें लिख रहा हूँ. मैं अपने सामने अनपढ़, अयोग्य लोगों को रखता हूँ. अगर कोई उनसे वैसी भाषा में बात करेगा तो क्या वे समझ सकेंगे? सो मैं सवाल-जवाब की शैली में किताबें लिख रहा हूँ. वह मुझसे सवाल कैसे पूछेगा? और मैं किस ज़बान में उसे उत्तर दूंगा ताकि वह समझ जाए?

कॉनी हाम – किस बारे में लिख रहे हैं?

कादर ख़ान – मैं ग़ालिब पर काम कर रहा हूँ. मैं उन ग़ज़लों को सुनाता हूँ, शब्द – दर –शब्द समझाता हूँ: इस शब्द का क्या मतलब है, इस का क्या. और इस शेर का सही मतलैब क्या है. और इसका गहरा अर्थ क्या है. इस शेड के पीछे का आइडिया क्या है. मैं करीब 100 ग़ज़लों पर काम कर चुका हूँ. मेरी किताबें छः महीने में पूरी हो जाएँगी. फोर मैं अपनी खुद की सीडी बनाऊंगा ताकि लोगों को बता सकूं ग़ज़ल कैसे पढ़ी जाती है. और कबीर और इकबाल पर भी काम चल रहा है. यही काम मैं गीतों पर भी करना चाहता हूँ. और अरबी और कुरान और हदीस पर भी.

कॉनी हाम – यह तो दो या तीन जिंदगियों के बराबर का काम है?

कादर ख़ान –  हम लोग ढाई सौ किताबें तैयार कर चुके हैं. एक लाख बीस हज़ार पन्ने टाइप हो चुके हैं. धीरे धीरे हम किताबें बांटना शुरू करेंगे. मैं इन किताबों पर लेक्चर दूंगा और इन किताबों को बांटूंगा ...मैं एड्स पर भी एक सीडी तैयार कर रहा हूँ. एक एनीमेशन फिल्म. आप एड्स की बात करते हैं तो लोग बोर होने लगते हैं. मुझे अपने ऑडीएंस को बोर करने या खुद बोर हो जाने से बहुत डर लगता है.

मुस्लिम समुदाय को शिक्षित करना:

दुनिया भर में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ असंतोष है. मैं भी मुस्लिम हूँ. अगर आप इन लोगों के घर जाकर इनके साथ बैठेंगे तो – हालाँकि लोग कहते हैं कि इन्होने संसार की शांति को तबाह कर दिया है – दरअसल इनके अपने घरों में शांति नहीं है. गरीबी. अशिक्षा. एक दूसरे का सम्मान नहीं. घर में बाप बेटे की इज्ज़त नहीं करता. बेटा माँ की बात नहीं सुनता. माँ अपने पति की नहीं सुनती. कोई किसी की इज्ज़त नहीं करता. एक तनाव जैसा हर समय बना रहता है क्योंकि पैसा नहीं है. जब वे बाहर आते हैं तो उन्हें दुनिया की आँखों में अपने लिए नफरत नज़र आती है. सो प्रतिशोध की भावना से ... – मान लीजिये आप किसी को मारने के लिए हत्यारे को किराए पर लेना चाहते हैं, तो ऐसा करने आप खुद तो जाएंगे नहीं.  आपको एक हत्यारे की ज़रूरत है. आप उसे ८००० रूपये देने को तैयार हैं. और अगर वह राजी है तो आप चाहेंगे आपका काम ५००० में हो जाए. ठीक है! 3-4% लोग हैं जो ऐसे काम करते हैं. और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है. ये ज़रूरतमंद संकी लोग हैं, हिंसा से भरे हुए. आप उन्हें कैसे रोक लेंगे? कुछ ऐसा हो पाता कि सारी मुस्लिम कौम एक डोर से बंध पाती. अब क्या है कि मुस्लिमों में कोई एक हाईकमान तो है नहीं. बहुत सारी हईकमानें हैं. इन सब ने मिलकर साथ आना चाहिय्र और तय करना चाहिए कि : मैं यह मारकाट,  हत्या और आतंकवाद करने वाला नहीं हूँ, मैं नहीं चाहूँगा मेरा भाई या मेरा बेटा ये काम करे. कुछ लोग यह काम कर रहे हैं. मगर इसे रोका कैसे जाए? अगर हर इलाके का अपना हाईकमान है और अगर वहां कुछ होता है तो यह उसकी ज़िम्मेदारी मानी जानी चाहिए. मैं इसी तरह का कुछ काम करने की तरफ बढ़ रहा हूँ. अगर मैं फ़िल्मी कलाकार बनकर जाऊंगा तो वे मेरी बात न्हींसुनेंगे, सो मैं अध्यापक बनकर जाता हूँ. मैं उन्हें शिक्षित करने का प्रयास करूंगा. उनके दुखों को सुनूंगा उनकी तकलीफों का समाधान निकालने की कोशिश करूंगा. धीर धीरे उनके घरों से होता हुआ उनके दिलों में उतरने की कोशिश करूंगा. इसमें वक्त लगेगा पर मेरा मानना है मुझे सफलता मिलेगी.

इस्लामी कानून इस धरती पर अरबी में लिखी हुई पवित्र पुस्तक की मार्फ़त आया. लेकिन बहुत सारे मुस्लिम अरबी नहीं जानते. उन्हें साहित्य पढने की तमीज़ नहीं. वे कैसे समझेंगे इस्लामी क़ानून को? वे उसका अनुवाद पढेंगे. अनुवादक आपको कुछ भी बता सकता है और आप उसे मानने लगेंगे क्योंकि आप सोचते हैं वही अल्लाह के शब्द हैं. लेकिन जब आप भाषा को समझते हैं और कल कोई मुल्ला-मौलवी कहता है कि फलां काम करो या यह कि सारे मुसलमान एक हो जाएं और कोई गलत काम करने लगें तो मैं उन्हें शिक्षित कर इस लायक बनाना चाहता हूँ कि वे उनसे पूछ सकें “बताओ कहाँ लिखा है ऐसा?” तब उस मुल्ला-मौलवी ने अपनी बात साबित करना पड़ेगी. अगर वह ऐसा नहीं कर पाता तो उसकी बात कोई सुनेगा ही नहीं. ये है मेरा प्लान.

मनुष्य होने की बाबत:

एक इंसान बस एक इंसान होता है. इसे आप किसी नाम से कैसे बुला सकते हैं? क्या होता है हिन्दू? मुसलमान? ईसाई? हर इंसान के दो हिस्से होते हैं. एक अपने भगवान से उसका रिश्ता होता है. यह उन दोनों के बीच की बात है. मुझे आपसे यह पूछने का कोई हक़ नहीं कि आप क्या करते हैं और न आपको मुझसे ये बात पूछने का. कि आप पूजा करते हैं या नहीं. दूसरा हिस्सा मेरा-आपका सम्बन्ध है. मैं आपसे कैसा बर्ताव करता हूँ. जैसे मान लीजिये किसी का विवाह किसी औरत से हुआ है या वह उस औरत से मोहब्बत करता है. यह प्रेम उसकी व्यक्तिगत समस्या है. वह उसे समाज के सामने लेकर नहीं आता. वह उसकी चर्चा समाज में नहीं करेगा. अगर वह ऐसा करता है तो यह उसकी कमजोरी है. इकबाल ने एक उम्दा लाइन लिखी है:

दर्द-ए-दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को,
वर्ना ताअत के लिए कुछ म न थे    

अगर खुदा चाहता कि उसे पूजा जाए तो फरिश्तों की क्या कमी थी? उसे आदमी बनाने की क्या ज़रुरत थी? अगर आदमी बनाया तो इसलिए कि उसे एक दिल दिया गया. और एक अच्छे दिल को दर्द सहना आना चाहिए. और वह दर्द बांटा जाना चाहिए. तो आपस में दुःख बाँट लें, तो इंसान को दुःख बांटने के लिए पैदा किया गया दुनिया में. पूजापाठ ही करना था तो फिर फ़रिश्ते बहुत थे. तो उसने कायको पैदा किया हमको?

कॉनी हाम – और सुख बांटने को नहीं? सुख नहीं, सिर्फ दुःख?

कादर ख़ान – दुःख बहुत अच्छी चीज़ है.

(दुःख और यातना को आगे समझाने के लिए कादर खान ने, जब उनसे मैंने पूछा कि उनका फेवरेट डायलाग क्या है, फिल्म ‘मुकद्दर का सिकन्दर’ का एक सीन चुना. उन्होंने अपनी वशीभूत कर लेने वाली शैली में आवाज़ के उतार-चढावों के साथ एक अध्यापक की तरह मुझे समझाते हुए यह डायलाग सुनाया. - कॉनी हाम)

कादर ख़ान – इस फिल्म में मैंने एक भिखारी का रोल किया था. मैं एक कब्रिस्तान में जाता हूँ और एक बच्चे को देखता हूँ. बच्चा बड़ा होकर अमिताभ बच्चन बनता है. वह कब्र पर बैठा रो रहा है.

“किसकी कब्र पर बैठे हो बच्चो?

“हमारी माँ मर गयी है.”

“उठो. आओ मेरे साथ. चारों तरफ देखो. यहाँ भी कोई किसी की बहन है, कोई किसी का भाई है. कोई किसी की माँ है. इस शहर-ए-खामोशियों में, इस खामोश शहर में, इस मिट्टी के ढेर के नीचे सब दबे पड़े हैं. मौत से किसको रास्तागरी है? इस मौत से कौन छूट सकता है? आज उनकी, तो कल हमारी बारी है. मेरी ये बात याद रखना इस फकीर की बात याद रखना. ये ज़िन्दगी में बहुत काम आएगी. कि अगर सुख में मुस्कराते हो तो दुःख में कहकहे लगाओ. क्योंकि ज़िन्दा हैं वो लोग जो मौत से टकराते हैं, पर मुर्दों से बदतर हैं वो लोग जो मौत से घबराते हैं. सुख तो बेवफा है. चन्द दिनों के लिए है. तवायफ की तरह आता है. दुनिया को बहलाता है दिल को बहलाता है और चला जाता है, मगर दुःख तो हमेशा का साथी है.एक बार आता है तो कभी लौटकर नहीं जाता, इसलिए सुख को ठोकर मार, दुःख को गले लगा. तकदीर तेरे क़दमों में होगी और तू मुकद्दर का बादशाह होगा.

(समाप्त)     


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