बादाम के
बौर का वर्णन करना
- महमूद
दरवेश
बादाम के
बौर का वर्णन करने को फूलों का कोई ज्ञानकोष
नहीं कर
सकता मेरी मदद, न कोई शब्दकोश.
शब्द लुभा
ले जाते हैं मुझे वाक्पटुता के फंदे में
जो घायल
करता है विवेक को, और तारीफ़ करता है अपने बनाए घाव की.
जैसे एक
आदमी एक स्त्री को बता रहा हो उसी की भावनाएं.
मेरी अपनी
भाषा में कैसे चमक सकता है बादाम का बौर
जबकि मैं एक
गूँज से अधिक कुछ नहीं?
उसके आरपार
देखा जा सकता है, जैसे एक तरल हंसी
जो अंकुवाई
हो शर्मीली ओस की एक टहनी पर ...
एक सफ़ेद
सांगीतिक वाक्य जितना हल्का ...
एक ख़याल की
निगाह जितना कमज़ोर जो रिस जाता है हमारी उँगलियों के बीच से
जिसे हम
लिखते हैं फ़िज़ूल ही ...
किसी कविता
की एक पंक्ति जितना सघन जिसे अक्षरवार तरतीब में न लगाया गया हो.
बादाम के
बौर का वर्णन करने को, मुझे ज़रुरत होती है अचेतन के पास बार-बार जाने की,
जो मुझे
पेड़ों पर टंगे मोहब्बतभरे नामों तक ले जाता है.
इसका नाम
क्या है?
कुछ नहीं
के काव्यशास्त्र में क्या है इस चीज का नाम?
मुझे तोड़
देना होगा गुरुत्व और शब्दों को,
ताकि मैं
उनके हल्केपन को महसूस कर सकूं जब वे
बदलते हैं
फुसफुसाते हुए प्रेतों में और मैं उन्हें बनाता हूँ जैसे वे मुझे बनाते हैं,
एक सफ़ेद
पारदर्शिता.
मातृभूमि
और निर्वासन शब्द नहीं हैं
वे सफेदी
के आवेग हैं
बादाम के
बौर के वर्णन में.
न बर्फ न
कपास.
आप हैरत
करते हैं वह किस तरह उठ जाता है चीज़ों और नामों से.
अगर किसी
लेखक को बादाम के बौर के वर्णन करने को
एक कामयाब
रचना करनी हो, तो कोहरा उठेगा
पहाड़ियों
से, और लोग, सारे के सारे लोग, कह उठेंगे:
हाँ यही है.
ये शब्द हैं हमारे राष्ट्रगान के.
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(चित्र: विन्सेंट वान गॉग की पेंटिंग 'आलमंड ब्लौसम्स')
1 comment:
बहुत सुंदर ।
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