Monday, October 13, 2014

हिटलर की सेना सदी की छलांग लगाकर ऐन आपके सामने आ जाती है - शिवप्रसाद जोशी की नई कवितायें – ३



प्रकाश

कितनी देर कोई किसी का इंतज़ार कर सकता है
मिनट घंटे दिन सप्ताह महीने साल सदी 
दिक्-काल में इंतजार कर सकता है कोई?
एक सुदूर प्रकाश के पृथ्वी तक पहुंचने का इंतज़ार
कोई कहता है इंतज़ार मत करो
तो क्या आप मान लेते हैं?
नहीं, आप बस इंतज़ार में चलते हैं.

एक भूगोल से दूसरा भूगोल आ जाता है
मौसम चक्र बदल जाते हैं
चिड़ियाँ पुराने रास्तों को छोड़कर
नई हवाओं की तलाश में चली जाती हैं
इंसाफ़ दुनिया के कई घरों को खटखटाकर
लौट आता है
व्यर्थता भी जैसे कई कई अर्थ ग्रहण करती हुई
एक सुनसान उजाड़ से एक खिली हुई हरीतिमा में
जा बैठती है
यातनाओं के घड़े भरते जाते हैं
मौतों का इंतज़ार रहता है उस अतल कुएँ को
हिटलर की सेना सदी की छलांग लगाकर
ऐन आपके सामने आ जाती है
अट्टाहस करती हुई, पर्चे फेंकती हुई
पूरा आसमान काले बादलों से ढक जाता है
तो क्या आप ठिठुर कर उन्हीं बादलों में गुम हो जाते हैं?

जैसे प्रकाश स्थायी है
वैसा ही रहता है इंतज़ार
वह और ऊपर पहुँचकर चक्कर काटता रहता है.


1 comment:

Rs Diwraya said...

आपने बहुत खुब लिख हैँ। क्योकिँ परिवर्तन ही जीवन है।My blog पर
आंमन्त्रण