Wednesday, October 15, 2014

कुछ कहने से अच्छा है वॉयलिन बजाना - शिवप्रसाद जोशी की नई कवितायें – ५



एक एमैच्योर संगीतकार का वॉयलिननामा

एक वॉयलिन ही दिखता है बार बार
कहीं पर रखा हुआ
उसे बजाया नहीं गया है
कब उसे कोई उठाएगा
मेरा बहुत मन करता है
कि उसे हाथ में लूँ
फिर ज़रा टिकाऊँ कांख से और ठोड़ी से
सही कोण ढूँढता हुआ
अटपटेपन में और ज़रा शरमाते हुए
वो डंडी उठा लूँ
और रख दूँ उसे वॉयलिन के तारों पर
कि जैसे किसी ध्यानमग्न साधू को न जगा बैठूँ का डर.

एक वॉयलिन बजाने का मन करता है
दुनिया का सबसे कोमल साज़
कुछ कहने से अच्छा है वॉयलिन बजाना
बहुत कुछ जो कहने से रह गया
आ जाए शायद वॉयलिन के तारों में
ठीक की जा सकें गल्तियाँ
अच्छी बातों की पुनरावृत्ति
नई बातों का आगाज़
वॉयलिन असल में इतना निकट है
कि दूर तक जाता है उसका असर
सारे संदेश
उसी के हैं.

मुझे वॉयलिन बजाना नहीं आता
लेकिन मेरे दिल के क़रीब का साज़ तो वही है
मैं न जाने कितनी बार सपने में बजा चुका हूँ वॉयलिन
निर्जन में किसी के पास भीड़ में
चलता हुआ
खड़ा कहीं पर सोचता
मैं किसी के हाथ में वॉयलिन देखता हूँ
तो सहसा याद आती है एक तस्वीर
जिसमें बस बजाया ही जाने वाला था
एक छोटा सा वॉयलिन.

जब नदियाँ अपना पानी लेकर लौट जाती हैं
मैं उनके किनारों पर जाता हूँ
निकालता हूँ जैसे वॉयलिन
आवाज़ की आवृत्तियाँ काँपती हुई इकट्ठा हो जाती हैं
जब बजता है
अस्तव्यस्त दिल का तार
लौटता हूँ
वॉयलिन को कमीज़ की जेब में रखकर
एक कलम की तरह.


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