Saturday, October 25, 2014

मैं एक गौरैया हूँ भूसे की बनी सपना देखती हुई मछली का - माज़ेन मारूफ़ की कवितायें – ९


एक कुलीन माफ़िया

- माज़ेन मारूफ़

मैं भटकता हूँ
जीवन के नाले में
किसी पुराने तिरपाल के थैले की तरह लिए अपनी स्मृति,
टपकते हुए फ़रिश्ते
जिन्हें मैंने जमा किया बीते समय में.
छोड़ आता हुआ अपने होंठ धातु के एक प्याले में
एक बूढ़े के लिए
किसी मरे हुए लकड़ी के कुंदे की तरह
और मैं एक गौरैया हूँ भूसे की बनी
सपना देखती हुई मछली का,
लेकिन वह भारी ठेलागाड़ी
जो लादे लाती है आंसू  
किसी और दफ़ा मेरे गालों पर से
दौड़ती हुई
बिना ब्रेक के.
वह कॉकरोच जिसे मैंने दो दिन दिए थे
मरने के लिए
वह घंटों पहले पड़ा रहा अपनी पीठ पर
थोड़ा सा उठाता हुआ अपना सिर
आसमान की तरफ़,
शायद वह फुसफुसाना चाहता था कोई बात फरिश्तों से
मैं उसे लेकर जाऊँगा खुले में
उसके सामने अपने विशाल आकार से
मंत्रमुग्ध
उसके बाद
मैं उसे टांग दूंगा ठेलागाड़ी के पीछे
उसके प्रेमी को
देकर एक चुम्बन
और फिर मैं लौट आऊँगा
एक कुलीन माफिया की तरह
जिसने अभी अभी ख़त्म किया है अपने दुश्मनों को
और जो सपना देख रहा है
मछली का.

1 comment:

Sanju said...

Sunder Rachna...
Aabhar