आख़िरकार रेहाना
जब्बारी को ईरान की न्याय-व्यवस्था के वहशीपन और सांवेदनिक दारिद्र्य के आगे अपनी
जान देनी पड़ी. उन्हें फांसी दे दी गयी. बेहद संयत और बुद्धिमत्तापूर्ण तार्किक
भाषा में बिना ज़रा भी क्षुब्ध हुए अपनी माँ को उन्होंने एक पत्र भेजा जो तमाम सोशल
साइट्स पर सार्वजनिक हुआ. उसका हिन्दी तर्जुमा भी फेसबुक पर कई दीवारों पर पाया
जाने लगा है. फेसबुक पर पोस्ट की गयी अपडेट्स का जीवनकाल बहुत लम्बा नहीं होता.
ब्लॉग पर तब भी पांच-दस साल पुरानी चीज़ों को आसानी से पाया जा सकता है. चूंकि फेसबुक
पर इस पोस्ट को लाइक/अनलाइक की श्रेणी से ऊपर जगह नहीं मिलनी, इसी वजह से इसे कबाड़ख़ाने
पर पोस्ट कर रहा हूँ. आप में से अधिकाँश ने भीतर गहरे उद्वेलित कर देने वाले इस पत्र
को सम्भवतः पढ़ लिया होगा लेकिन इसे पुनः यहाँ लगाने का औचित्य मैं ऊपर बता चुका
हूँ.
मेरी प्रिय मां,
आज मुझे पता चला कि मुझे किस्सास (ईरानी विधि व्यवस्था में प्रतिकार का कानून) का सामना करना पड़ेगा. मुझे यह जानकर बहुत बुरा लग रहा है कि आखिर तुम क्यों नहीं अपने आपको यह समझा पा रही हो कि मैं अपनी जिंदगी के आखिरी पन्ने तक पहुंच चुकी हूं. तुम जानती हो कि तुम्हारी उदासी मुझे कितना शर्मिंदा करती है? तुम क्यों नहीं मुझे तुम्हारे और पापा के हाथों को चूमने का एक मौके देती हो?
मां, इस दुनिया ने मुझे 19 साल जीने का मौका दिया. उस मनहूस रात को मेरी हत्या हो जानी चाहिए थी. मेरा शव शहर के किसी कोने में फेंक दिया गया होता और फिर पुलिस तुम्हें मेरे शव को पहचानने के लिए लाती और तुम्हें पता चलता कि हत्या से पहले मेरा रेप भी हुआ था. मेरा हत्यारा कभी भी पकड़ में नहीं आता क्योंकि हमारे पास उसके जैसी ना ही दौलत है, ना ही ताकत. उसके बाद तुम कुछ साल इसी पीड़ा और शर्मिंदगी में गुजार लेती और फिर इसी पीड़ा में तुम मर भी जाती. लेकिन, किसी श्राप की वजह से ऐसा नहीं हुआ. मेरा शव तब फेंका नहीं गया. लेकिन, इविन जेल के सिंगल वॉर्ड स्थित कब्र और अब कब्रनुमा शहरे में जेल में यही हो रहा है. इसे ही मेरी किस्मत समझो और इसका दोष किसी पर मत मढ़ो. तुम बहुत अच्छी तरह जानती हो कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं होती.
तुमने ही कहा था कि आदमी को मरते दम तक अपने मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए. मां, जब मुझे एक हत्यारिन के रूप में कोर्ट में पेश किया गया तब भी मैंने एक आंसू नहीं बहाया. मैंने अपनी जिंदगी की भीख नहीं मांगी. मैं चिल्लाना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं किया क्योंकि मुझे कानून पर पूरा भरोसा था.'
मां, तुम जानती हो कि मैंने कभी एक मच्छर भी नहीं मारा. मैं कॉकरोच को मारने की जगह उसकी मूंछ पकड़कर उसे बाहर फेंक आया करती थी. लेकिन अब मुझे सोच-समझकर हत्या किए जाने का अपराधी बताया जा रहा है. वे लोग कितने आशावादी हैं जिन्होंने जजों से न्याय की उम्मीद की थी! तुम जो सुन रही हो कृपया उसके लिए मत रोओ. पहले ही दिन से मुझे पुलिस ऑफिस में एक बुजुर्ग अविवाहित एजेंट मेरे स्टाइलिश नाखून के लिए मारते-पीटते हैं. मुझे पता है कि अभी सुंदरता की कद्र नहीं है. चेहरे की सुंदरता, विचारों और आरजूओं की सुंदरता, सुंदर लिखावट, आंखों और नजरिए की सुंदरता और यहां तक कि मीठी आवाज की सुंदरता.
मेरी प्रिय मां, मेरी विचारधारा बदल गई है. लेकिन, तुम इसकी जिम्मेदार नहीं हो. मेरे शब्दों का अंत नहीं और मैंने किसी को सबकुछ लिखकर दे दिया है ताकि अगर तुम्हारी जानकारी के बिना और तुम्हारी गैर-मौजूदगी में मुझे फांसी दे दी जाए, तो यह तुम्हें दे दिया जाए. मैंने अपनी विरासत के तौर पर तुम्हारे लिए कई हस्तलिखित दस्तावेज छोड़ रखे हैं.
मैं अपनी मौत से पहले तुमसे कुछ कहना चाहती हूं. मां, मैं मिट्टी के अंदर सड़ना नहीं चाहती. मैं अपनी आंखों और जवान दिल को मिट्टी बनने देना नहीं चाहती. इसलिए, प्रार्थना करती हूं कि फांसी के बाद जल्द से जल्द मेरा दिल, मेरी किडनी, मेरी आंखें, हड्डियां और वह सब कुछ जिसका ट्रांसप्लांट हो सकता है, उसे मेरे शरीर से निकाल लिया जाए और इन्हें जरूरतमंद व्यक्ति को गिफ्ट के रूप में दे दिया जाए. मैं नहीं चाहती कि जिसे मेरे अंग दिए जाएं उसे मेरा नाम बताया जाए और वह मेरे लिए प्रार्थना करे.
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