Wednesday, October 8, 2014

पलकों की झपक, पुतली की फिरत, सुरमे की घुलावट वैसी ही


बाबा नज़ीर अकबराबादी की नज़्म ... छाया गांगुली की नशीली आवाज़ ... गूंगे को गुड़ ...और क्या मांगे?



ख़ूँरेज़ करिश्मा नाज़ सितम
ग़मज़ों  की झुकावट वैसी ही
पलकों की झपक, पुतली की फिरत
सुरमे की घुलावट वैसी ही

बेदर्द सितमगर बेपरवाह
बेकल चंचल चटकीली सी
दिल सख़्त क़यामत पत्थर सा
और बातें नर्म रसीली सी

चेहरे पर हुस्न की गर्मी से
हर आन चमकते मोती से
ख़ुश रंग पसीने की बूँदें
सौ बार झमकते मोती से

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