बाएँ से दाएं : दादू वीरेन डंगवाल, गोली बाबू उर्फ़ प्रज्ञान डंगवाल और बीच की पीढ़ी प्रफुल्ल डंगवाल |
आज इन्हीं की संगत में दोपहर गुलज़ार-
गोली बाबू और दादू
-वीरेन डंगवाल
गोली बाबू बड़े मज़े से गाएं
बाएँ-शाएँ
दादू का ये हाल कि बिस्तर से भी उठ
न पाएं
आठ किलो के गोली नंग-धडंगू मौज-मदीना
बहा रहे हैं भाग-भाग कर अपना ख़ूब
पसीना
दादू पैतालीस किलो दम फूल जाए पल भर
में
कहीं गिर पड़े चोट न खा जाएँ कमर में
सर में.
पाखी दीदी दिखें खुशी से बस पागल हो
जाएं
दादी जी के बाल खोद दें मम्मा का
सिर खाएं
गर्मी में नंगू फिरने का शौक़ हुआ
गोली को
खेंच-खेंच नन्हे अंगों को दुनिया को
नापा करते
पूरी धरती को तैरा देते अपनी सू-सू
से
भांपा करते जगती को छोटी छोटी आंखों
से.
इसी जोड़बंदी से साथी रोशन है यह
दुनिया
और इसी में प्रवाहमान है इसका ठाठ
निराला
शामिल करके खुद को मैंने जैसे-तैसे
इसमें
कठिन दिनों का काफी हिस्सा देखो तय कर डाला.
कठिन दिनों का काफी हिस्सा देखो तय कर डाला.
गोली बाबू |
थोडा बड़े गोली बाबू |
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