रात
भर
-अजंता
देव
अब
जा के कम हुई रोशनी
कम
हुआ शोर
गुम
हुए से गुमनाम चेहरे
घर
पहुंचे कुछ देर पहले
चलो
रात हुई
सूरज
सिर से उतरा
रात
भर की मोहलत मिली
मन्दिर
में आरती का दिया धुआँ-धुआँ
तीलियाँ
बन चुकी अगरबत्तियां
पुजारी
को भी अब चाहिए तन्हाई
चाँद
आसमान के किनारे ठिठका है
तारे
टहल रहे यहाँ से वहाँ
कि
कब रात गहरी हो
गाढ़ा
हो जाए सन्नाटा
गलियाँ
दूर तक नज़र आएं लम्बाई में
रास्ते
कब बदलें मंजिल में
और
मंजिल खिसक कर
गिर
पड़े पृथ्वी से परे
चांदनी
तैयार है
साज़-ओ-सामां
के साथ
एक-एक
ज़र्रे को
सितारा
बनाने के लिए
रात
मुझे इन सब में शामिल कर लो.
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