इस माह आप लगातार अजंता
देव की कविताओं से रू-ब-रू होते रहे हैं. २००२ में वाग्देवी प्रकाशन बीकानेर से
आया ‘राख का क़िला’ अजंता देव का पहला कविता संग्रह है. उसी की शीर्षक रचना पेश है.
राख का क़िला
-अजंता देव
किले के नीचे आधी रात
भोपा भोपी के कन्ठ खनखनाते
हैं
खेजड़ी से टिका रहता है
रावण हत्था
ऊंटनी का दूध दुहा जाता है
नीचे से ही
नज़र आते हैं नक्काशीदार
कंगूरे
चमचमाती दीवारें
नीचे से भव्य लगती है
राजा की रिहाइश
नीचे ही बसी है बस्ती
नीचे ही रहते हैं लोग
जिन्हें याद हैं पुराने
किस्से रियासत के
इन्होने देखा है
पागल रानी को
किले की दीवार पर बैठे
सुनी हैं इन्होने
रात भर चिल्लाने की आवाजें
ऊंटों की आँखों में आंसू
देखे हैं
जो चलते थे शाही काफिलों
में
रेगिस्तान के बीच
अचानक नहीं खड़ा है
सदियों से जलकर बना है
राख का किला
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