Thursday, December 25, 2014

आत्मा नहीं हूं मैं कि पहने रहूं एक ही देह

फ्रेंच कलाकार एमील ऑगस्ट पिन्शार की कृति 
अन्य जीवन से

-अजंता देव

किस लोक के कारीगर हो
कि रेशे उधेड़ कर अंतरिक्ष के
बुना है पटवस्त्र
और कहते हो नदी सा लहराता दुकूल

होगा नदी सा
पर मैं नहीं पृथ्वी सी
कि धारण करूं यह विराट
अनसिला चादर कर्मफल की तरह
मुझे तो चाहिये एक पोशाक
जिसे काटा गया हो मेरी रेखाओं से
इतना सुचिक्‍कन कि मेरी त्‍वचा
इतने बेलबूटे कि याद न आये
हतभाग्‍य पतझर
सारे रंग जो छीने गये हों
अन्‍य जीवन से

इतना झीना जितना नशा
इतना गठित जितना षडयंत्र

मैं हर दिन बदलती हूं चोला
श्रेष्ठजनों की सभा में
आत्मा नहीं हूं मैं
कि पहने रहूं एक ही देह
मृत्यु की प्रतीक्षा में.

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