कोलकाता
में कॉलगर्ल
-अजंता
देव
उसके
भूरे बाल बस सफ़ेद होने को थे
कत्थई
लाल साड़ी का किनारा नीचे
से
मुड़ गया था
आँखों
में पुरानी नींद के धब्बे थे
दोनों
हाथों से बैग पकड़े
वह
लगातार देख रही थी मुझे
कि
अजनबी
भांप
रही थी कि
प्रतिद्वंद्वी.
ठीक
इसी समय अगर नहीं आती ट्राम
तो
शायद हम बात करते
शहर
के हालात ठीक नहीं हैं
और
मौसम कितना चिपचिपा है
लेकिन
ट्राम के जाने के बाद
मैं
बुदबुदाई
आजकल
हर जगह कितनी भीड़ है.
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