Saturday, December 20, 2014

अजंता देव और अमीर खान साहेब की जुगलबंदी



यह जानते हुए कि वे स्वयं एक सिद्धहस्त संगीतकार भी हैं, अजंता जी की इस कविता को यहाँ पोस्ट करने के लिए टाइप करते हुए मुझे अमीर खान साहेब के स्वर में राग बिहाग सुनना ही था. उसे सुने बगैर सही से समझ नहीं आनी थी यह सुन्दर कविता. यह ख़ास पेशकश अजंता जी के वास्ते -

राग बिहाग

-अजंता देव

पहले ही उड़ना था मुश्किल
जबकि हवा थी विरल
दिशा थी सरल
और अब यह शाम
यह अकेले
झुण्ड से अलग
कांपते से छोटे
शरीर की साधना
क्या हूँ इस अनंत आकाश में
कैसा लग सकता हूँ
मैं एक पक्षी
काले में गुम होता
एक काला धब्बा

मैं ही हूँ
जिसके पर नोचे गए
रामचरित मानस में
मैं ही हूँ
जिसे तीर मारा राजकुमार ने
मैं ही हूँ
जिसे घायल होकर
गिरना है पृथ्वी पर
देखते हुए
लगातार पास आती धरती
फड़फड़ाते हुए

भारी होते दो पंख.

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अमीर खान साहेब के स्वर में राग बिहाग सुनिए -


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