(पिछली कड़ी से आगे)
एक समय था जब हावर्ड मार्शल और बीबीसी
के इंजीनियरों को उनके तामझाम के साथ लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड के पवित्र गलियारों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी.
लेकिन रेडियो उस समय मनोरंजन उद्योग की सरहद पर पहुंचा चाहता था और परम्परा का
तकाज़ा था कि “द शो मस्ट गो ऑन.” सो, ये लोग ग्रूव रोड छोर के नज़दीक स्थित
पियानोवादक हैराल्ड क्रेकस्टन के घर अपना डेरा जमाया करते. चूंकि इस घर में एक
संगीत गैलरी भी थी, संभवतः इसीलिये इसे लॉर्ड्स की लाइव कमेंट्री के लिए मैरीलीबोन
क्रिकेट क्लब (MCC) और बीबीसी द्वारा आपसी सहमति से चुना गया था.
लेकिन यह कुछ अजीबोगरीब घटनाओं का
कारण भी बना. ‘रेडियो टाइम्स’ में मार्शल याद करते हैं: “टेस्ट मैच के अंत में
स्टम्प्स उखाड़े ही गए थे और मैं दिन के खेल का ब्यौरा देने के लिए जल्दी जल्दी उस
घर में घुसा. एक अर्ध-बेसमेंट कमरे की खिड़की पर माइक्रोफोन लगा दिया गया था और जब
बत्ती लाल हुई और मैं बोलना शुरू ही करने वाला था, ऊपर के कमरे से पियानो की हल्की
आवाज़ आना शुरू हो गयी. ऊपर कोई बड़े उत्साह से पियानो के सुरों पर अभ्यास कर रहा
था. ठीक है पियानो के अभ्यास के लिए सुर बहुत ज़रूरी होते हैं, पर जब वे क्रिकेट
कमेंट्री का बैकग्राउंड बनाने पड़ें तो बड़ी अजीब स्थिति पैदा होती है. जीरो आवर
शुरू हो गया था और मुझे अपनी वार्ता शुरू करनी थी. इधर एकाध इंजीनियर पियानोवादक
के कमरे का रुख कर चुके थे. मुझे स्वीकार करना होगा कि पियानो के स्वर मुझे बाधित
कर रहे थे - “ला-ला-ला-ला-ला-लाआआ!” और उसके बाद पियानो की एक कुंजी पर एक जोर का
दचका. यह कुछ देर चला. अचानक आवाज़ बंद हुई. चाहे मान-मनव्वल से हुआ हो चाहे डरा-धमका
कर, इंजीनियरों ने अपना काम कर दिया था. ... खैर! अब मैं कमेंट्री पर ध्यान लगा
सकता था.”
अभी दो साल का वक़्त और लगना था.
१९३४ के आते आते मार्शल लॉर्ड्स के भीतर थे. उन्हें पुरानी टेवर्न के सबसे ऊपर एक
कमरा दे दिया गया था जिसे उन्होंने वेंडल बिल के साथ साझा करना होता था. बिल का
काम था ऑस्ट्रेलिया ब्रॉडकास्टिंग कारपोरेशन के सिंथेटिक ब्रॉडकास्ट के लिए केबल्स
भेजना.
हावर्ड को एक समस्या से और जल्द ही
दो-चार होना पड़ा. १९३४ के लॉर्ड्स टेस्ट में वे बिल ओ’रीली की बल्लेबाजी कला का
वर्णन करते हुए बोल गए “एज़ फॉर ओ’रीली यू वैल्यू सो हाईली. गॉब्लीमी ओ’रीली, यू आर
बोलिंग वैल!”
विषयांतर:
कॉक्नी भाषा मेरा प्रिय विषय रहा है.
अंग्रेज़ी भाषा के इस बेमिसाल संस्करण पर कबाडखाने में मेरी याददाश्त में कम से कम
दो पोस्ट्स लगी हैं. उनमें से एक का लिंक ये रहा –
तो जनाब हावर्ड मार्शल ने जब “गॉब्लीमी”
कहा तो वे एक मध्यकालीन गाली दे रहे थे. यह दीगर बात है कि उनकी ऐसी मंशा नहीं रही
होगी. निखालिस हिन्दी में कहूं तो वे कह रहे थे “बैटिंग तो जो है सो है पैन्चो
बोलिंग भी बहुत कर्री करता है ओ’रीली.”
आश्चर्य या गुस्से को अभिव्यक्त
करने वाला एक्सप्रेशन “गॉब्लीमी” “God blind me!” का कॉक्नी
प्रतिरूप है. ईसाई धर्म में तीसरा कमान्डमेंट है “Do not use the Lord's name in vain oaths.” सो मध्यकाल में लोग इस देवादेश को
न तोड़ते हुए ऐसे वाक्य बोला करते थे कि भस भी मिट जाए और खुदा का नुकसान भी न हो.
फिलहाल जनाब हावर्ड मार्शल को
नुकसान यह हुआ कि बीबीसी को क्रोधित परम्परावादी श्रोताओं की तरफ से कोई ३०० ख़त
मिले. फिलहाल मार्शल के इस कथन ने यह बताया कि उनकी कमेंट्री कितनी लोकप्रिय हो
चुकी थी.
(जारी)
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