हैडफोन लगाए हुए सेमूर दे लोत्बीनीयरे |
मार्शल का काम आम तौर पर दस मिनट
में मैच के खेल का सारांश पेश करना होता था या कभी कभार रनिंग कमेंट्री भी जब खेल
वाकई दिलचस्प मरहले पर पहुँचने वाला हो या पहुँच गया हो. तब तक इंग्लैण्ड में यह
बात सभी मानते थे कि क्रिकेट जैसे धीमे खेल की बॉल-बाय-बॉल कमेंट्री चल ही नहीं
सकती. इस बात को ग़लत साबित करने के लिए एक विज़नरी की ज़रुरत थी.
छः फुट आठ इंच लम्बाई वाले सेमूर दे लोत्बीनीयरे, जिन्हें उनके दोस्त लॉबी
पुकारते थे, ने १९३५ में बीबीसी के आउटसाइड ब्रॉडकास्ट्स के मुखिया का पद सम्हाला.
वे एक प्रशिक्षित वकील थे और उन्होंने व्याख्या करने की अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल
बीबीसी को एक ऐसी पब्लिक के लिए आनंददायक शै बना देने में किया जो स्पोर्टिंग ज़िन्दगी को
बेहद पसंद करती थी.
एक साल के भीतर उन्होंने सॉकर, रग्बी, टेनिस,
गोल्फ, हॉर्स और ग्रेहाउंड रेसिंग और ज़ाहिर है क्रिकेट की कवरेज को बीबीसी के
प्रसारण का नियमित हिस्सा बना दिया. अपने सपने को आकार देने के लिए उन्होंने अपने
साथी के तौर पर हावर्ड मार्शल को चुना ताकि वे क्रिकेट के शौकीनों की आदतें बदल
सकें.
लम्बे समय तक मार्शल अकेले ऐसा करते
रहे. उनके पास फकत एक इंजीनियर हुआ करता था. सहयोग देने को कोई स्कोरर तक उन्हें
नहीं मिलता था. उनकी बगल में कोई टेस्ट क्रिकेटर अपनी सलाहें देता हुआ मंडराया
नहीं रहा करता था. सो उस ज़माने के जो भी टेप बचे हुए हैं उनमें हमें बमुश्किल ही
स्कोर सुनाई देता है. ऐसा भी होता था कि आपको पता नहीं चलता था कि हेडली वेरिटी
तेज़ बोलर हैं या लेफ्ट आर्म स्लो बोलर. पिच कितना टर्न ले रही थी, यह भी अगले दिन
के अखबार से पता चलता था.
जो भी हो, कमेंट्री आमतौर पर लोकप्रिय होती जा रही
थी. किसी भी उम्दा मैच भर आशा और निराशा का एक ड्रामा चलता रहता था. मार्शल की
शैली ऐसी होती थी जैसे कोई दोस्त किसी दूसरे से बेहद मीठी आवाज़ में बातें कर रहा
हो.
मैच के बीच वाले बोझिल और उबाऊ समय में भी स्रोतों
को कैसे बांधकर रखा जाय, यही एक अच्छे कमेंटेटर के जीनियस की असली परीक्षा होती
थी.
१९३० के दशक का अंत आते आते सेमूर दे लोत्बीनीयरे ने मार्शल के साथ मिलकर रेडियो
कमेंट्री के लिए एक ऐसी तकनीक का ईजाद कर लिया था जिसे उसके बाद टेस्ट मैच स्पेशल
चलाने वाले बड़े-बड़े नामों ने अपनाया.
(जारी)
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