Monday, January 5, 2015

मेरी दुआ है कि आप अपने उजले रेशम की बाँहें और फैलाएं



ये अलग बात है कि ऊपर लिखी दुआ क़ुबूल न हो सकी. परवीन शाकिर का इंतकाल बहुत कम उम्र में हो गया.


परवीन शाकिर की शायरी के चाहनेवालों के लिए ख़ास तोहफा लाया हूँ. उनके नाम जिया मोहिउद्दीन का ख़त. जिया साहब इस ख़त के बहाने भारतीय उपमहाद्वीप के साहित्यिक गलियारों में पुरुष लेखक-महिला लेखक के वास्ते बनाए गए मर्दवादी खेमों को उघाड़ते चलते हैं और ज़ाहिर है परवीन की शायरी को समझने का एक नया ज़ाविया भी मुहैय्या कराते हैं. बेहतरीन ऑडियो है -

1 comment:

azdak said...

उलझ रहा है मेरे फ़ैसलों का रेशम.. बात करने के बहाने हैं बहुत, आदमी मगर किससे बात करे..