Sunday, January 18, 2015

वचन दो! ज्ञान की फसल से दृष्टि का बीज अलगाओगी तुम - फ़रेन की तीसरी कविता

'पैराडाईज़' के कांटो 3 में पिकारदा से बात करते दान्ते और कॉन्स्टेन्स  
पिकारदा* को विवाह का प्रस्ताव

-फ़रेन

अमेज़न के वेग का डर और
नील की लंबी थकान
उभरती है मेरी नींद में!

तुम्हें थामनी होगी मेरी नींद...

मेरे सच की धूप में पकना होगा
अपने अनाज की महक खोए बगैर
वचन दो!
ज्ञान की फसल से दृष्टि का बीज
हवा की तरह अलगाओगी तुम...

कबूलना होगा तुम्हें
मेरे क्रोध की हत्या का पाप

मेरे चेहरे की चेचक तलाश लेगी
तुम्हारी आत्मा का आर्श

जब कर लेना मेरे मस्तिष्क का ज़हर
जैसे उतारते हैं नग
जन्म के ग्रहों की स्थितियों की ज़ंग

जिस स्वच्छ ओर नीली झील की तलाश में
तुम अपनाती हो सूत्र
जानना रह-रह कर
वो मेरे विस्फोट के बाद ही संभव होगी

सूत्र के बदले
बदलना होगा तुम्हें मुझसे
मेरा अमंगल..
अहंकार के नारियल को छील कर
आश्वस्त करो मुझे!!
तुम जरूर पहुँचोगी मेरे मीठे पानी तक..

अपनेपन के उन बदरंग क्षणों में
समझाना
कैसे रचा स्त्रियों को
'सिर्फ एक पसली से' या
खुलकर क्यों नहीं हँसती मोनालिज़ा!

संशय उतरेगा संबन्ध के आँगन में जब 
केवल साहस शस्त्र होगा तब

अकेली यात्राओं के आरम्भ में जने हैं
सूनेपन ने अकेलेपन के अधूरे पत्थर

साहस बटोरने वहीं जाना!!

आर्चिज़ के उन उत्सवों 
और क्यूपिड की कहानियों के मध्य
बैठा होगा मेरी श्रद्धा का डर
तुम चीन्ह लेना मेरे सारे डर

मेरे प्रयासों को लंबी नहीं
गहरी नींद सुलाना
जगा देगा मेरे स्वप्नों की सुबह को
कच्ची नींद से...

आभावों को सुला
फिर ईद आएगी
थामना सब्र
समारोहों के उस उतावलेपन में
असारता का समुद्र फैलता है
जाम्वन्त बन
फुसफुसाओ मेरी ताकतें
मुझे कूदना है...

मेरे तुतलाते साहस के लिए
दादा की अंगुली बन
जल्द आओ!

हाथ की सत्ता में अकेली पड़ती है तर्जनी
आओ!
उठाओ मेरा गोवर्धन


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* 'दाँते' के 'पैरादाइजो' में चाँद पर रहने वाली औरत

फ़रेन (फ़ोटो साभार संतोष मिश्रा)

(कबाड़खाने पर फ़रेन की बाकी कविताओं के लिंक :

अर्थशास्त्र नहीं, समाजशास्त्र पहनेगा ताज़ हमारे ओलिम्पिक में -फ़रेन की दूसरी कविता

तोड़देना उनकी दूरबीनें तेरी आबादी घट रही है)



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