ज्ञानरंजन के साथ प्रशांत चक्रबर्ती |
प्रशांत चक्रबर्ती की तीन और छोटी कविताएं पेश हैं -
पीढ़ियाँ
एक नई पीढ़ी
है
चकमक से आग
जैसे कीचड़
से एक पिल्ले का जन्म
अधबने होते
हैं वे
जब नक्षत्र रचते हैं उन्हें
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कौन बनता
है हमें नरभेड़िया?
जादूगरनियां?
पिशाच?
अनुवांशिकी?
पाप?
जवाब है चंद्रमा
---
कैमियो*
पुराने वक्त की, झागदार चट्टानी संरचनाएं
पूर्वनिश्चित
अभिलेख-पट्टिकाएं
पिछली रात
के घोंघे के भीतर से गायब हो गए समुद्र
अतिकाय
किनारे वृक्षों के ठूंठ
अदृश्य
पानी को खींच लेने वाली जड़ें
चूने में
उकेरी गयी मछलियाँ
खिचड़ाए
बालों वाले दो इंसान –
छवियाँ,
अनकहे
अपराध,
सन्नाटा
...
(*अंगूठी या जड़ाऊ पिन जैसी चीज़ों
में लगने वाले पच्चीकारी किया गया नगीना)
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प्रतीक्षा पाण्डेय ने आग्रह किया है कि मैं इन कविताओं के मूल संस्करण भी यहाँ लगाऊँ. सो -
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प्रतीक्षा पाण्डेय ने आग्रह किया है कि मैं इन कविताओं के मूल संस्करण भी यहाँ लगाऊँ. सो -
Generations
Fire from
flint
Is a new
generation
Like birth
of a puppy from slime
Stars
produce them Imperfect
What
makes us Werewolves?
Witches?
Demons?
Heredity?
Sin?
The moon it
is.
Cameo
Previous,
foamy rock formations
Foregone
tablets
Vanished
seas within last night’s shells
Outsized
shoreline tree boles
Roots that
suck water unseen
Fishes
etched in lime
Two
grizzled humans: images, untold crimes, silence...
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