प्रफुल्ल बिदवई ज़िंदाबाद
- शिवप्रसाद
जोशी
प्रफुल्ल बिदवई से छात्र राजनीति के दिनों में
पहचान हुई थी! फ़्रंटलाइन में उनका कॉलम आता था.
पर्यावरण, एटमी राजनीति और कूटनीति, अंतरराष्ट्रीय संबंध, पूंजीवादी वर्चस्व की
होड़, विश्व तापमान, ग्लोबल वॉर्मिंग की पॉलिटिक्स, विश्व शक्तियों की ख़ुराफ़ातें
आदि ऐसी कई बातें थी जो हमें प्रफुल्ल बिदवई के लेखों से पता चलती थी और एक विचार
बनता जाता था.
आपको वैचारिक रूप से सजग और तैयार करने वाले
ऐसे कितने लेखक हैं. भारतीय भाषाओं में? प्रफुल्ल
अंग्रेज़ी में लिखते थे और दिल और दिमाग के इतने क़रीब थे. अरुंधति रॉय से पहले
अंग्रेज़ी में हम उन्हें ही जानते आए थे. उनका लिखना कभी ग़लत ही नहीं होता था
इतनी अकाट्य प्रामाणिक और नपीतुली राईटिंग थी उनकी. अपनी वाम वैचारिकी के साथ उनके
पास एक सजग और नैतिक अंतदृष्टि भी थी जिसके भरोसे वो वाम दलों को उनकी सुस्ती,
बौद्धिक तंगहाली, और दिल्ली केंद्रित नज़रिए के लिए फटकारते रह पाए थे. वे उन तमाम
सार्वजनिक बुद्धिजीवियों में एक थे जो पिछले साल हिंदूवादी रथ की दिल्ली आमद पर
विचलित थे. सब लोग इससे ज़्यादा विचलित वाम दलों की निष्प्राणता से थे. वो कील इन
वाम दुर्गपतियों को कब चुभेगी.
प्रफुल्ल बिदवई से नाता कभी नहीं टूटा. उनके
लेखों का संग्रह करते आए. लेखन में उनसे टिप्स लिए, उनकी बातें कोट की. मेहनत और
नज़रिया बनाना सीखा. कभी सीधा वास्ता नहीं हुआ लेकिन जर्मनी के बॉन शहर से 2007 के
दिनों में फ़ोन पर बातें हुईं, गाहेबगाहे उनका इंटरव्यू करते थे, पर्यावरण,
राजनीति और अंतरराष्ट्रीय परमाणु कार्यक्रम पर. वो इतनी प्यारी भाषा बोलते थे. बोलने
में भी एक शब्द अतिरिक्त नहीं. इतने अलर्ट. इतने समय के पाबंद. और आवाज़ में ऐसी
गतिशीलता और तीव्रता और ज़ोर- जैसे कितनी छटपटाहट है इस आदमी में कि सब कुछ ठीक
क्यों नहीं हो जाता. और इधर उनका ब्लॉग. कितना जीवंत
और शोधपरक आलेखों से भरा हुआ. ये वैचारिक और ज़मीनी लड़ाइयों के लिए मानो तैयारी
की एक पाठशाला सी है. आख़िरी पोस्ट एक मई 2015 की है. मई दिवस. लेखन के श्रमिक ही
तो थे प्रफुल्ल.
प्रफुल्ल बिदवई के निधन से बहुत तक़लीफ़ होती
है. बहुत निजी तक़लीफ़. वे हम सबको छात्र के रूप में स्कॉलर के रूप में लेखक के
रूप में ऐक्टिविस्ट के रूप में लीडर और पॉलिटिक्ल बिरादरी के रूप में जगाते आ रहे
थे. कहां जगे हम. अभी मौत हुई है तो हड़बड़ा कर उठे हैं. फिर सो जाएंगे.
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