उसे वह नहीं
बनना था जिससे लोगों को भय लगता है और जिसे मिलने से वे कतराने लगते हैं. उसे अपनी बेटी अन्ना के होने वाले बच्चे को गोद में
लेकर नानी होने का अहसास करना था. वह चाहती थी उसकी छोटी बेटी लीडिया स्तरीय
अभिनेत्री बने. वह चाहती थी पढ़ चुकने लायक न रह सकने से पहले अपनी पसंद की सारी
किताबें पढ़ सके.
एलिस हॉलैंड
ने अपने जीवन के निर्माण में बहुत श्रम किया है और वह उस पर गर्व करती है. हारवर्ड
में पढ़ाने वाली एलिस का पति भी एक सफल व्यक्ति है और उसके बच्चे बड़े हो चुके हैं.
जब वह शुरू शुरू में चीज़ों को भूलना शुरू करती है वह इस बात पर ध्यान नहीं देती
लेकिन जब वह अपनी पड़ोस में ही खो जाती है, उसे अहसास होता है कि सब कुछ सही नहीं
चल रहा. मेडिकल जांच से पता चलता है कि वह अल्ज़ाइमर्स की बीमारी से ग्रस्त है. कुल
पचास साल की आयु में.
एक तरफ एक
ख्यात शिक्षाविद और प्रोफ़ेसर के रूप में उसकी इमेज संकट में पड़ने लगती है, स्वयं
अपने और अपने परिवार के साथ उसे अपने सम्बन्ध को नए सिरे से परिभाषित करने की
आवश्यकता पड़ती है.
अपने बीते
हुए कल को खो चुकी एलिस की स्मृति एकाध झीने धागों से उसे अपनी ज़िन्दगी से बांधे
रहती है. वर्तमान के पलों को भरसक जी लेने का प्रयास करती एलिस अब भी एलिस बनी
रहती है.
'स्टिल एलिस' के एक दृश्य में जूलिएन मूर (बाएँ) |
लिसा जेनोआ
की किताब ‘स्टिल एलिस’ पर बनी हालिया फिल्म आपको थर्रा कर रख देती है. इसे देखने
के लिए खासी हिम्मत और धैर्य की ज़रूरत होगी. ‘अ ब्यूटीफुल माइंड’ और ‘आर्डिनरी
पीपल’ जैसी किताबों/ फिल्मों से तुलना की जा सकती है ‘स्टिल एलिस’ की. किसी व्यक्ति
की बीमारी को कितनी संवेदना के साथ ट्रीट किया जाना चाहिए, यह अहसास ‘स्टिल एलिस’
दिलाती है.
किताब पढ़ने का धैर्य आपमें न भी हो तो फिल्म तो देखी ही जानी चाहिए. उपन्यास 2007 में आया था जबकि फिल्म 2014 में बनी. वॉश वेस्टमोरलैंड द्वारा निर्देशित फिल्म में जूलिएन मूर में एलिस हॉलैंड की भूमिका निभाई है जबकि एलेक बाल्डविन उनके पति बने हैं. टोरंटो के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ. जूलिएन मूर को उनके अभिनय के लिए ढेरों इनामात हासिल हुए हैं जिनमें बेस्ट ऐक्ट्रेस का ऑस्कर शामिल है.
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