वीरेन डंगवाल (5 अगस्त 1947- 28 सितम्बर 2015) |
वीरेन दा, अलविदा
सावन सूखा बीता
सावन बीता
पर अब तक हुई
नहीं बारिश
पेड़ों की अंतस
धारा भी ज्यों खुश्क हुई
कुम्हलाए नरम
नवेले पत्ते जामुन के
भुंज गए सरीखे
लगते वे कचकच्चे फल
मर कर भुरभुरी
हुईं वे मरी चींटियां कोटर में
खेतों में उड़ती
धूल
शोक के ज्यों
गुबार
यह दृश्य दिखाया
नागरजन को टीवी
ने
हाहाकारी यह दृश्य
सुघड़ टीवी चैनल.
मामला किन्तु
कविता का ज़रा अलग ठहरा
इतना ही बतलाया
तो फिर बतलाया क्या
पर इस से आगे
बोलें भी तो
क्या बोलें
कैसे बोलें.
भीतर भीतर यह
गोंद सरीखा जो रिसता है
प्राचीन भीत पर
कैसा अनुपम अंकन है
कैसी बेताबी जिसके
बिना
सुकून नहीं
ऐसा भीषण रस्ता
कविता का रस्ता
है.
(वीरेन डंगवाल का फ़ोटो - अपल सिंह)
2 comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 1 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2115 में दिया जाएगा
धन्यवाद
श्रद्धांजलि वीरेन दा
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