Saturday, October 17, 2015

साहित्य अकादमी के अफ़सरान आपके प्रश्नों से तंग आ चुके हैं

साहित्य अकादमी पुरस्कारों को लेकर चल रही ताज़ा बहस के मद्देनज़र आज असद ज़ैदी की एक कविता. 

कविता को लेकर कवि का कहना है: आज से क़रीब सत्रह या अठारह साल पहले (१९९७-९८) दूरभाषनाम की यह कविता लिखी गई थी. अभी अटलबिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री और गोपीचंद नारंग साहित्य अकादमी के अध्यक्ष नहीं बने थे (इन पदों पर इंदर कुमार गुजराल और यू आर अनंतमूर्ति विराजमान थे). बुरे आसार ज़रूर चारों तरफ़ नज़र आते थे, पर मित्रगण ऐसे किसी अंदेशे के इज़हार को अतिरेकया ओवर-रिएक्शनकहकर उड़ा दिया करते थे.


दूरभाष

-असद ज़ैदी

साहित्य अकादमी के अफ़सरान आपके प्रश्नों से तंग आ चुके हैं.
उन्हें सताना बंद कीजिए उन्हें नहीं मालूम बंदी कविराय का फ़ोन नंबर
और कलानाथ भा.प्र.से. के घर का पता
वे आपको कैसे मिला सकते हैं सुशीला गुजरांवाल से
या उनके ख़ाविंद से जिन्हें ख़ुद नहीं आजकल अपना पता!

कौन खोटे? महेश खोटे! अजी वो तो कभी के यहाँ से जा चुके...
महादेव प्रसाद से मिलिए या टेलिफ़ोन इंक्वायरी से पूछिए
महादेव प्रसाद? हाँ हाँ वही...
परसों ही की बात है फ़ोन की घंटी बजी और
अकादमी के सचिव से पूछा गया हमदर्द मुरादाबादी का
स्वास्थ्य अब कैसा है और अकादमी का कोई आदमी
उनके निवासस्थान पर तैनात है या नहीं...
और हास्य कविता महाकुंभ की तारीख़ें क्या बदल दी
गईं हैं और वो जो गुरदास कान आने वाले थे
कब आएंगे?

साहित्य अकादमी के कारकुन
शादी के सुंदर कार्ड बनवाने में आपकी मदद नहीं कर सकते
हाँ तलाक़शुदा लोगों का अकादमी अपने
वाचनालय में स्वागत करती है क्योंकि उनसे बेहतर कोई पाठक नहीं होता!
जी नहीं, मसख़रों की अखिल भारतीय डाइरेक्टरी हम नहीं छापते
हाँ कालातीत हास्य से जो रिश्ता साहित्य का बनता है उसको
अकादमी मानती है... और इस विषय पर
सेमिनार की योजना कुछ समय से विचाराधीन है.

जी निखिल हिंदू सम्‍मेलन की गतिविधियों से तो हम वाक़िफ़ नहीं
विश्व हिंदी सम्मेलन के बारे में ज़रूर जानते हैं
पर वह हमारी शाखा नहीं है
और विश्व हिंदू परिषद का हिंदू साहित्य सम्मेलन से कोई
सीधा रिश्ता नहीं है...
अव्वल तो आपकी मुराद शायद
हिंदी साहित्य सम्‍मेलन से है... जी? अच्छा!
हिंदू साहित्य सम्मेलन फिर कोई दूसरी संस्था होगी.

नागरी प्रचारिणी सभा के हम मेम्‍बर नहीं
और हिंदी जाति परिषद का नाम तो कभी पहले सुना नहीं!
अच्छा, तो यह उत्तर-नेहरू विकास अध्ययन संस्थान का
एक प्रकोष्ठ है! ठीक है.
सुनिए, यह अकादमी एक अखिल भारतीय संस्था है
और नागरी प्रचारिणी सभा या हिंदी जाति परिषद दरअसल
दूसरी तरह की अखिल भारतीय संस्थाएँ हैं
हमारा इनसे कोई झगड़ा नहीं
असल में ये ग़ैर सरकारी संगठन हैं और अकादमी
एक स्वायत्त संगठन.

देखिए, हम न किसी के विरोध में हैं, न पक्ष में
संविधान के आठवें शिड्यूल में जो भाषाएँ हैं
उन सबको अकादमी भारतीय भाषा का दरजा देती है
उर्दू भी जैसा कि आप जानते हैं आठवें शिड्यूल में है
और नागरी प्रचारिणी वालों को भी इसका पता है.

आप कुछ जिज्ञासु आदमी मालूम होते हैं
देखिए हिंदुत्व की परिभाषा अकादमी ने नहीं
उच्चतम न्यायालय ने तय की है : हम तो
पालन के दोषी हैं

और अगर हम ऐसा बहुत लंबे समय से
करते चले आ रहे हैं
तो इसे ग़फ़लत नहीं, दूरंदेशी समझा जाना चाहिए. 

(१९९७-९८)

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कुंजी:

बंदी कविराय कैदी कविराय, अटल बिहारी वाजपेयी का कवि नाम
कलानाथ भा.प्र.से. संस्कृति मंत्रालय का कोई भी नौकरशाह
सुशीला गुजरांवाल शीला गुजराल, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल की पत्नी, साहित्य में रुचि रखती थीं और कुछ समय के लिए अकादमी की चहेती हो गई थीं
उनके ख़ाविंद प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल, जिनकी अस्थिर सरकार ग्यारह महीने ही चली
महेश खोटे विष्णु खरे, एक समय साहित्य अकादमी के उप-सचिव
महादेव प्रसाद साहित्य अकादमी का कोई भी मंझोले स्तर का कर्मचारी
हमदर्द मुरादाबादी काल्पनिक
गुरदास कान एक लोकप्रिय गायक
हिंदुत्व की परिभाषा’ — उच्चतम न्यायालय का साल 1995 का वह निर्णय जिसके अनुसार हिन्दुत्व या हिन्दुइज़्म किसी धर्म का नहीं, भारतीय लोगों की सामान्य जीवन शैली का नाम है.





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