Thursday, October 15, 2015

मुकम्मल कबाड़ी हर किसी के मज़े ले रिया है

फ़ोटो - http://thepositiveextremist.blogspot.in से साभार

आंसूराम कोतवाल
- संजय चतुर्वेदी

फ़िक्रो-फ़न का इनामी ख़लीफ़ा
बेख़ुदी के मज़े ले रिया है 
जैसे दिल में अपुन क्रान्तिकारी
दिल्लगी के मज़े ले रिया है 

नूरे यज़्दां विसाले सनम भी
ये भी दे दो मुझे वो भी दे दो
वासना के उजाले में आदम
हड़बड़ी के मज़े ले रिया है 

हुक़्म देते हैं बन्दे ख़ुदा को 
छोड़ हम, सबको बातिल बताना 
मेरा, अल्हम्दुलिल्लाह, मालिक 
नौकरी के मज़े ले रिया है 

राजनीतिक सवालों का मसला 
सिरियस ही रहा है हमेशा
ये अलग बात है उसका दरशन 
मसख़री के मज़े ले रिया है 

दुख हैं भोले अदाएं सयानी 
रौशनी में हैं पिन्हाँ अँधेरे 
वीर बालक शहादत की मीठी 
गुदगुदी के मज़े ले रिया है 

इन्कलाबी धरा भेस हमने 
चार सू हो गई बल्ले-बल्ले
कोई जन की कोई संस्कृति की 
चांदनी के मज़े ले रिआ है 

दस घरों में जले जिनसे चूल्हा 
उनसे आई है छोटी सी बोतल 
इस नशीले हुनर का खिलाड़ी
मुफ़लिसी के मज़े ले रिया है

जिस अहद को तगाफ़ुल किया था 
उसकी ले ली है सारी मलाई 
हर इदारे में बैठा सयाना
गड़बड़ी के मज़े ले रिया है 

जिनको फेका था रद्दी में हमने 
हम उन्हीं के बगल में गिरे हैं
वक़्त है वो मुकम्मल कबाड़ी 
हर किसी के मज़े ले रिया है.

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