Thursday, December 31, 2015

क़सम खाता हूं कसम तोड़ने का अफ़सोस नहीं करूंगा - नए साल पर तीसरी कविता

जापानी कवि शुन्तारो तानीकावा की यह अति प्रसिद्ध कविता कबाड़खाने पर ३१ दिसंबर के मौके पर लगाए जाने का एक तरह से रिवाज़ चल चुका है. नए साल पर लिखी गयी इससे बेहतर कविता मुझे अब तक मिलना बाकी है. सो नए साल पर आपको शुभकामनाएं  - और पुनः यही कविता. सलाम शुन्तारो तानीकावा!

बॉक्सिंग पेंटिंग के लिए विख्यात जापानी चित्रकार उशियो शीनोहारा

नए साल की क़समें 

क़सम खाता हूं शराब और सिगरेट पीना नहीं छोड़ूंगा
 
क़सम खाता हूं
, जिन से नफ़रत करता हूं उन्हें नहला दूंगा नीच शब्दों से
क़सम खाता हूं
, सुन्दर लड़कियों को ताका करूंगा
क़सम खाता हूं हंसने का जब भी उचित मौका होगा
, खूब खुले मुंह से हंसूंगा
सूर्यास्त को देखा करूंगा खोया खोया
फ़सादियों की भीड़ को देखूंगा नफ़रत से
क़सम खाता हूं दिल को हिला देने वाली कहानियों पर रोते हुए भी सन्देह करूंगा
दुनिया औए देश के बारे में दिमागी बहस नहीं करूंगा
बुरी कविताएं लिखूंगा और अच्छी भी
क़सम खाता हूं समाचार संवाददाताओं को नहीं बताऊंगा अपने विचार
क़सम खाता हूं दूसरा टीवी नहीं खरीदूंगा
क़सम खाता हूं अंतरिक्ष विमान चढ़ने की इच्छा नहीं करूंगा
क़सम खाता हूं कसम तोड़ने का अफ़सोस नहीं करूंगा
इस की तस्दीक में हम सब दस्तख़त करते हैं.

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