कोशिश करो कुछ तफ़सीलों को याद रखने की
-येहूदा आमीख़ाई
कोशिश करो कुछ तफ़सीलों को याद रखने की.
क्योंकि
दुनिया ऐसे लोगों से भरी हुई है जिन्हें उनकी नींद से नोंच
डाला गया
जबकि उनके आंसुओं की मरम्मत करने वाला कोई न था.
और बनैले पशुओं की तरह नहीं
वे सब रहा करते हैं छिपने की अपनी-अपनी अकेली जगहों में
और मर जाते हैं युद्ध के मैदानों और हस्पतालों में - अच्छे
और बुरे दोनों साथ-साथ
और धरती उन सब को निगल जाती है, कोरा के अनुयायियों की तरह.
मौत के ख़िलाफ़ विरोध में
आख़िरी पल तक खुली हुई उनकी ज़ुबान,
फ़क़त एक उनकी चीख़ - एक साथ प्रशंसा करती
और शाप देती हुई. करो, करो,
कोशिश करो कुछ तफ़सीलों को याद रखने की.
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