Friday, December 25, 2015

मगर कोई मुझे बताओ तो - तो भी क्या!

सियोल में रहने वाली युवा कवयित्री चोई युंग-मी की कविताओं में शहरी यथार्थवाद और ऐन्द्रिकता का बेहतरीन संयोजन पाया जाता है. उनकी काव्य-चेतना १९८० के दशक के अन्तिम सालों में उभरी जब कोरिया सैन्य शासन से लोकतान्त्रिक की दिशा में बढ़ा. उनकी रचनाओं में इस परिवर्तन से होने वाले गुणात्मक बदलावों की आशा और ऐसा न होने पर एक ख़ास क़िस्म का नैराश्य और मोहभंग दृष्टिगोचर होते हैं. अपने देश में उन्हें उत्तरआधुनिकतावाद के शुरूआती रचनाकारों में गिना जाता है.



तीस की उम्र, क़िस्सा तमाम

जाहिर है मैं जानती हूं
मुझे क्रान्ति से ज़्यादा भाते थे क्रान्तिकारी
बीयर के गिलास से ज़्यादा बीयर-पब
विरोध में गाए जाने वाले वे गीत नहीं
जो "ओ मेरे कॉमरेड!" से शुरू होते थे
बल्कि मद्धम आवाज़ में गुनगुनाए जाने वाले प्रेमगीत
मगर मुझे बताओ न - तो भी क्या!
तमाम हुआ क़िस्सा
बीयर निबट चुकी, एक-एक कर लोग सम्हालते हैं 
अपने बटुए, 
अन्त में तो वह भी जा चुका, लेकिन
बिल सब ने चुकाया मिल-बांट कर,
और सब जा चुके अपने जूतों समेत-
मुझे मद्धम सी याद तब भी है कि
यहां कोई एक रह जाएगा पूरी तरह अकेला
शराबख़ाने के मालिक के वास्ते मेज़ें पोंछता,
अचानक गर्म आंसू, याद आता हुआ सब कुछ,
अचानक कोई दोबारा गाने लगेगा अधूरा छोड़ दिया गया गीत
-शायद मैं जानती हूं
कोई एक सजाएगा एक मेज़, भोर से पहले
इकठ्ठा करता लोगो को
कोई रोशन कर देगा रोशनियां, मंच बना देगा नया
मगर कोई मुझे बताओ तो - तो भी क्या! 

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