कलावर्ग के विषयों से दूरी
विज्ञान को लेकर मेरा रवैया हमेशा एकतरफ़ा रहा है और जब मैं छोटा था मैंने अपनी तकरीबन सारी मेहनत उसी पर लगाई. मेरे पास न तो सीखने को बहुत समय था न वह धीरज जो कलावर्ग के विषयों (मानविकी/ ह्यूमैनिटीज़) के लिए बहुत आवश्यक होता है. यह अलग बात है कि विश्वविद्यालय में कला के विषय थे जो आपने लेने ही होते थे. मैंने पूरी कोशिश की कि मैं किसी तरह कुछ भी न सीखूं और उस पर काम करता रहूँ. यह तो बाद में मुमकिन हो सका जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ और मेरे पास आराम के लिए थोड़ा समय हुआ और मैं उसके (ह्यूमैनिटीज़ के) लिए थोड़ा समय निकाल सका. मैंने थोड़ा बहुत ड्राइंग करना सीख लिया है और मैं थोड़ा बहुत पढ़ता भी हूँ. लेकिन मैं अब भी एक तरह से एकतरफ़ा इंसान हूँ और मुझे बहुत ज्यादा नहीं आता. मेरे पास सीमित बुद्धि है और मैं उसे एक ख़ास दिशा में इस्तेमाल करता हूँ.
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