1981 में मशहूर वैज्ञानिक रिचर्ड फ़ाइनमैन ने बीबीसी के टीवी प्रोग्राम 'होराइज़न' में एक साक्षात्कार दिया था. इस समय तक जनाब फ़ाइनमैन अपनी ज़िन्दगी का बेहतरीन समय जी चुके थे (1988 में उनका देहांत हुआ). वे अपने जीवन की उपलब्धियों और उसकी बारीकियों पर एक ख़लीफ़ा की तरह निगाह डालते हैं और इसके नतीजे में यह साक्षात्कार एक बेहद ईमानदार, बेबाक और अन्तरंग दस्तावेज़ बन चुका है. फ़ाइनमैन अपने जीवन के अनेक हिस्सों की बाबत बताते चलते हैं.
यह शानदार इंटरव्यू इस ठिकाने पर आज से सिलसिलेवार लगाया जा रहा है. मैं कोशिश करूंगा हर दिन इसके एक हिस्से का अनुवाद करके आप तक पहुंचा सकूं.
इस पोस्ट के लिए आशुतोष उपाध्याय का शुक्रिया.
एक फूल की ख़ूबसूरती
मेरा एक चित्रकार दोस्त है जिसकी एक बात से मैं बहुत ज़्यादा इत्तफ़ाक नहीं रखता. वह एक फूल को पकड़कर मेरे सामने लाकर कहता है: "देखो ये कितना खूबसूरत है." और मेरे ख़याल से मैं उसकी बात से सहमत हो जाता हूँ. fir वह कहता है: "देखो, मैं एक चित्रकार हूँ और यह देख सकता हूँ कि यह कितना खूबसूरत है, लेकिन एक वैज्ञानिक के तौर पर तुम इसके टुकड़े-टुकड़े कर के देखोगे और यह एक बोझिल चीज़ बन जाएगा." और मैं सोचने लगता हूँ कि वह थोड़ा सा पागल है. सबसे पहली बात तो ये है कि जिस सुन्दरता को वह देख रहा है वह हर किसी के देखने को उपलब्ध है और मेरे लिए भी. हो सकता है कि मेरा सौन्दर्यबोध उसके जितना विकसित न हो लेकिन मेरा मानना है कि फूल की ख़ूबसूरती को मैं भी एप्रीशिएट कर सकता हूँ. साथ ही यह बात भी है कि मैं उसके मुकाबले एक फूल में ज्यादा चीज़ों को देख सकता हूँ. मैं उसके भीतर की कोशिका की कल्पना कर सकता हूँ, मैं उसके भीतर घट रही तमाम जटिल प्रकियाओं की कल्पना कर सकता हूँ जिनके पास भी एक सौन्दर्य होता है. मेरे कहने का मतलब है यह फ़क़त एक सेंटीमीटर भर की सुन्दरता की नहीं है, उससे छोटे आकार में भी एक सुन्दरता है जो उसकी अंदरूनी बुनावट है. और वे प्रक्रियाएं भी - यह तथ्य बेहद दिलचस्प है कि फूलों में रंग इस हिसाब से विकसित हुए हैं कि वे परागण के लिए कीट-पतंगों को अपनी तरह आकृष्ट कर सकते हैं - इसका मतलब यह हुआ कि कीट-पतंगे रंगों को देख सकते हैं. इससे एक सवाल पैदा होता है - क्या निम्नतर जीवरूपों के पास भी सौन्दर्यबोध होता है? वह सुन्दर क्यों है? ये कई तरह के रोचक सवाल हैं जो दिखलाते हैं कि वैज्ञानिक ज्ञान एक फूल से उपजने वाले आवेग और रहस्य और रौब में इज़ाफ़ा ही करता है. यह सिर्फ इज़ाफ़ा ही करता है - यह किसी भी चीज़ को कम कैसे कर सकता है मेरी समझ से परे है.
(जारी)
यह शानदार इंटरव्यू इस ठिकाने पर आज से सिलसिलेवार लगाया जा रहा है. मैं कोशिश करूंगा हर दिन इसके एक हिस्से का अनुवाद करके आप तक पहुंचा सकूं.
इस पोस्ट के लिए आशुतोष उपाध्याय का शुक्रिया.
एक फूल की ख़ूबसूरती
मेरा एक चित्रकार दोस्त है जिसकी एक बात से मैं बहुत ज़्यादा इत्तफ़ाक नहीं रखता. वह एक फूल को पकड़कर मेरे सामने लाकर कहता है: "देखो ये कितना खूबसूरत है." और मेरे ख़याल से मैं उसकी बात से सहमत हो जाता हूँ. fir वह कहता है: "देखो, मैं एक चित्रकार हूँ और यह देख सकता हूँ कि यह कितना खूबसूरत है, लेकिन एक वैज्ञानिक के तौर पर तुम इसके टुकड़े-टुकड़े कर के देखोगे और यह एक बोझिल चीज़ बन जाएगा." और मैं सोचने लगता हूँ कि वह थोड़ा सा पागल है. सबसे पहली बात तो ये है कि जिस सुन्दरता को वह देख रहा है वह हर किसी के देखने को उपलब्ध है और मेरे लिए भी. हो सकता है कि मेरा सौन्दर्यबोध उसके जितना विकसित न हो लेकिन मेरा मानना है कि फूल की ख़ूबसूरती को मैं भी एप्रीशिएट कर सकता हूँ. साथ ही यह बात भी है कि मैं उसके मुकाबले एक फूल में ज्यादा चीज़ों को देख सकता हूँ. मैं उसके भीतर की कोशिका की कल्पना कर सकता हूँ, मैं उसके भीतर घट रही तमाम जटिल प्रकियाओं की कल्पना कर सकता हूँ जिनके पास भी एक सौन्दर्य होता है. मेरे कहने का मतलब है यह फ़क़त एक सेंटीमीटर भर की सुन्दरता की नहीं है, उससे छोटे आकार में भी एक सुन्दरता है जो उसकी अंदरूनी बुनावट है. और वे प्रक्रियाएं भी - यह तथ्य बेहद दिलचस्प है कि फूलों में रंग इस हिसाब से विकसित हुए हैं कि वे परागण के लिए कीट-पतंगों को अपनी तरह आकृष्ट कर सकते हैं - इसका मतलब यह हुआ कि कीट-पतंगे रंगों को देख सकते हैं. इससे एक सवाल पैदा होता है - क्या निम्नतर जीवरूपों के पास भी सौन्दर्यबोध होता है? वह सुन्दर क्यों है? ये कई तरह के रोचक सवाल हैं जो दिखलाते हैं कि वैज्ञानिक ज्ञान एक फूल से उपजने वाले आवेग और रहस्य और रौब में इज़ाफ़ा ही करता है. यह सिर्फ इज़ाफ़ा ही करता है - यह किसी भी चीज़ को कम कैसे कर सकता है मेरी समझ से परे है.
(जारी)
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https://www.youtube.com/watch?v=ZbFM3rn4ldo
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