Friday, January 15, 2016

बाबा का जाना


रंगमंच के बड़े अभिनेताओं में शुमार किये जाने वाले राजेश विवेक का आज कुछ समय पहले नहीं रहे. वे हैदराबाद में एक फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थे जब उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 66 की आयु में उनका स्वर्गवास हुआ.

रंगमंच में ख़ासा नाम कमा चुके बाबा के साथ अपने एक सिनेमेटोग्राफ़र दोस्त राजेश शाह के मुम्बई स्थित घर में मैं कुछ दिन उनके साथ रह चुका हूँ. जौनपुर के रहनेवाले बाबा खासी बीहड़ तबीयत के आदमी थे और अपने चार (या संभवतः पांच) बेटियों को लेकर अक्सर बहुत चिंतित रहा करते थे. जबसे मैंने उन्हें उन्हें पाब्लो नेरूदा की कुछ कवितायेँ पढ़कर सुनाई थीं, उन्होंने मुझे देवपुत्र बच्चा के नाम से पुकारना शुरू कर दिया था. राजेश शाह का प्यार का नाम काकू है जिसे बाबा हमेशा कुक्कू ही कहते रहे जिससे काकू को हमेशा भयानक खीझ आती थी.

यह उन दिनों की बात है जब 'बैंडिट क्वीन' रिलीज़ हुई थी और उस फिल्म में मेरे दोस्त निर्मल पाण्डे ने नायक की भूमिका निबाही थी. फिल्म में रघु भाई यानी रघुबीर यादव भी थे, तो मुम्बई में राजेश शाह के  उस छोटे सेे कमरे में रघुबीर यादव भी उन दिनों रह रहे थे. इन दोनों के बीच होने वाली चुहल भरी बहसें और शरारतें अविस्मरणीय हुआ करती थीं.

उस नन्हे से स्पेस में रघुबीर यादव और राजेश विवेक जैसे दो कद्दावर अभिनेताओं  के लिए जगह कैसे बन जाती थी, मेरी समझ से परे है. ऊपर से वहां  हम दो लोग और रह रहे थे.  

फिलहाल बाबा के साथ बिताए उस समय की यादें अभी जेहन में ताज़ा हैं और उनके देहांत की अचानक मिली इस ख़बर से मैं हक्का बक्का हूँ और दुखी भी.

आपको आपके देवपुत्र बच्चे का आख़िरी सलाम. 

श्रद्धांजलि! यह अभागा देश आपकी प्रतिभा के साथ पूरा न्याय नहीं कर पाया बाबा जिसकी फिल्मों के पास आपके वास्ते सिर्फ मसख़राना भूमिकाएं थीं! माफ़ करना.

1 comment:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "६८ वें सेना दिवस की शुभकामनाएं - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !