आज से मैंने महान फ़िलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश की किताब 'अ रिवर डाईज़ ऑफ़ थर्स्ट' का हिन्दी अनुवाद करना शुरू किया है. उसमें से कुछ नगीने आपके सामने जब-तब पेश किये जाते रहेंगे. अपनी मातृभूमि के लिए जितनी प्रतिबद्धता महमूद दरवेश इस कवि की कविताओं में नज़र आती है, वह बीसवीं सदी की कविता में दुर्लभ है.
अज पढ़िए इस पुस्तक की शीर्षक रचना, जो एक कविता है.
एक
नदी मरती है प्यास से
-
महमूद दरवेश
एक नदी थी यहाँ
और
दो उसके किनारे थे
स्वर्ग
में बसने वाली माँ थी एक जो उसे पालती थी बादलों की बूदों से
एक
नन्ही नदी धीमे-धीमे बहनेवाली
उतरती
हुई पर्वतशिखरों से
किसी
मोहिल ज़िन्दादिल मेहमान की मानिंद मिलने जाती गांवों तम्बुओं से
कनेर
और खजूर के पेड़ों को लाती हुई घाटी में
और
अपने किनारों पर रात का उत्सव मन रहे लोगों के साथ हंसती हुई:
'बादलों
का दूध पियो
और
घोड़ों को पानी दो
और
उड़ जाओ येरुशलम और दमिश्क को’
कभी
वह गाया करती साहस के साथ
और गाती आवेश में कभी
वह
एक नदी थी दो किनारों वाली
और
स्वर्ग में बसने वाली माँ थी एक जो उसे पालती थी बादलों की बूदों से
उन्होंने
उसकी माँ को अगवा कर लिया
सो
उसमें कम हो गया पानी
और
धीमे धीमे मर गयी वह प्यास से.
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