बम बनाने का न्यौता
[जब फ़ाइनमैन अपनी पी एच डी थीसिस पर काम कर
रहे थे, उन्हें परमाणु बम को विकसित करने के प्रोजेक्ट में भागीदारी करने बुलाया
गया था]
वह एक बिलकुल फर्क चीज़ थी. इसका मतलब था कि
मुझे अपनी रिसर्च रोक देनी थी जो कि मेरे जीवन की भूख थी. मुझे लगा कि मानव सभ्यता
को बचाने का काम करने के लिए मुझे उस से फुर्सत निकालनी पड़ेगी. सो? मुझे इसी
मुद्दे पर अपने साथ बहस करनी थी. सो मेरी पहली पहली प्रतिक्रिया यह थी कि मैं अपने
रोज़ की दिनचर्या को बाधित कर यह अटपटा काम करना नहीं चाहता था. और युद्ध को लेकर
किसी तरह की नैतिक बातों को लेकर भी समस्या थी. मुझे उस सब से कुछ ख़ास लेनादेना
नहीं था लेकिन मुझे इस बात से भय लगता था कि वह हथियार कैसा बनेगा – और चूंकि वह
संभव हो सकता था सो वह संभव था भी. मुझे ऐसी कोई बात नहीं मालूम थी जो इस तरफ
इशारा करती कि अगर हम उस काम को कर सकते
थे तो वे क्यों नहीं कर सकते थे. और यह सबसे पहली वजह थी कि साथ में काम किया जाना
ज़रूरी था.
[1943 की शुरुआत में फ़ाइनमैन ने लॉस अलामॉस में ओपनहाइमर की टीम
को ज्वाइन कर लिया था.]
जहाँ तक नैतिक मसलों का सवाल था, मेरे पास इस
बारे में बताने को कुछ है. उस प्रोजेक्ट को शुरू करने का शुरुआती कारण यह था कि
जर्मन खतरे में थे – इसने मुझे एक ऐसी प्रक्रिया की तरफ काम करने में लगा दिया
जिसका प्रयास इस पहले सिस्टम को शुरू में प्रिन्सटन में और फिर लॉस अलामॉस में किया
जा चुका था – ताकि बम कारगर साबित हो सके. उसे दुबारा डिज़ाइन करने के तमाम प्रयास
किये गए ताकि वह एक खराब बम बने और ऐसी ही और बातें थीं. यह एक ऐसा प्रोजेक्ट था
जिस पर हम सब साथ-साथ बहुत मेहनत कर रहे थे. और ऐसे किसी भी प्रोजेक्ट आप इसलिए
काम करते हैं कि अगर आपने फैसला कर लिया है तो आपको सफलता हासिल हो. तो जो मैंने
किया – और जो मेरे ख़याल से अनैतिक थे – वह ये था कि मुझे यह याद नहीं रहा कि उस
काम को करने का क्या उद्देश्य था. तो बाद में जब उद्देश्य ही बदल गया क्योंकि
जर्मनी की हार हो गयी थी, मेरे मन में उसके बारे में एक भी ख़याल नहीं आया. और यह
भी कि इसका मतलब यह था कि मुझे दोबारा से सोचना था कि मैं उस काम को कर ही क्यों
रहा था. मैंने सोचा ही नहीं. ठीक है?
(जारी)
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