Monday, January 25, 2016

दलित मूल के हिन्दी कवि प्रकाश साव की आत्महत्या



एक और हत्या

दलित मूल के हिन्दी कवि प्रकाश साव ने कलकत्ता के निकट अपने पैतृक गाँव टीटागढ़ में आत्महत्या कर ली है. दस सालों से वे आगरा के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान में बहुत ही कम वेतन पर एक अस्थाई नौकरी कर रहे थे. इन वर्षों में उन्होंने अपनी उच्चशिक्षा पूरी करने के साथ साथ पीएचडी भी हासिल कर ली थी. उनकी दो किताबें छपी थीं - 'न होने की सुगंध' (कविता संग्रह) और 'कविता का अशोक पर्व' (अशोक वाजपेयी की कविता पर शोधग्रन्थ).

उन्हें कुछ पुरुस्कार भी मिले थे (प्रकाश को 2000 में हिंदी कविता के लिए नागार्जुन पुरस्कार,  2012 में  भारतीय भाषा का युवा पुरस्कार और उत्तर प्रदेश सरकार का अक्षय पुरस्कार मिला था) लेकिन भद्रलोक-शासित साहित्य जगत में स्वीकार किया जाना उनके लिए एक स्वप्न ही बना रहा. वे कोई रेडिकल नहीं थे - बल्कि अपनी दलित जड़ों को प्रदर्शित करने में भी उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी और वे सोर्फ़ 'प्रकाश' नाम का इस्तेमाल करते थे. 

इस सब का कोई फायदा नहीं हुआ- उनके वास्ते कोई दरवाज़े नहीं खुले. वे उसी जगह रहे जहाँ से उन्होंने शुरू किया था - हिन्दी के एक संस्थान में एक बेठिकाना अस्तित्व. यह संस्थान भी हिन्दी के बाकी विभागों और संस्थाओं की तरह - चाहे वे सरकारी हों या प्राइवेट - किसी भी अल्पसंख्यक या दलित के लिए एक नरक से कमतर न था.

प्रकाश अपने पीछे युवा पत्नी और एक नन्हीं बेटी छोड़ गए हैं.

(यह टिप्पणी असद ज़ैदी की फेसबुक वॉल से साभार ली गयी है.)

कबाड़खाने की श्रद्धांजलि.

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