Friday, February 12, 2016

मिस्टर योस्सी की पश्चिमी जर्मनी यात्रा – 1


मेरे प्रिय लेखकों में से एक मनोहर श्याम जोशी के पश्चिम जर्मनी संस्मरणों के कुछ टुकड़े पेश हैं -

जब मैं पश्चिमी जर्मनी की यात्रा के लिए जाने लगा, तब नई दिल्ली में एफ.आर.जी. के दूतावास ने मुझे एक पतली-सी पुस्तिका दी-ये विचित्र जर्मन रीति-रिवाज.  जर्मनी में नियुक्त अमेरिकियों की सुविधा के लिए लिखी गई यह पुस्तक कार्टूनों के सहारे जर्मन तौर तरीकों के बारे में निहायत ही रोचक ढंग से जरूरी जानकारी देती है. इसे पढ़ने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि जर्मन लोग बहुत गम्भीर, औपचारिकता-विश्वासी और थोड़े रूखे होते हैं. 

इसी पुस्तिका को उलटते-पलटते मैं लुफ्टहांजा के उस विमान में सो गया जो पेइचिंग से दिल्ली के रास्ते फ्रांकफुर्त्त जाता है. पौ फटने से बहुत पहले जबर्दस्त ठहाके सुनकर नींद खुल गई. देखा गैली में जर्मनी इंजीनियरों का वह दल जर्मन विमान-सुन्दरियों के साथ कहवे और कहकहे का सुख लूट रहा है जो चीन में एक प्रसिद्ध जर्मन फर्म की ओर से कारखाना लगाकर स्वदेश लौट रहा था.

मैं भी चाय का तलबगार होकर गैली में पहुँचा. चाय की घूँट लेकर मैंने उस दल के सबसे हँसोड़ सदस्य से, जो एक विमान-सुन्दरी विशेष से कौतुक प्रीतिनिवेदन में बहुत उत्साह से व्यस्त था, कहा, ‘‘गुस्ताखी माफ, मगर आप जर्मन मर्द की सरकारी छवि बिगाड़ने में कोई कसर उठा नहीं रख रहे हैं.’’

वह बोला, ‘‘जर्मन मर्द की कोई सरकारी छवि भी है क्या ?’’

मैंने उसे वह पुस्तिका दिखा दी.

हँसोड़ इंजीनियर पुस्तिका पढ़ता जाए और मुझे निशाना बनाता हुआ कोई टिप्पणी करे. उदाहरण के लिए पुस्तिका में एक जगह लिखा है कि जर्मनी में हाथ चूमने का रिवाज है और हाथ चूमने के परम्परागत ढंग में कोई चूक नहीं की जानी चाहिए. परम्परागत ढंग में ओंठ हाथ पर छुलाए नहीं जाते हैं, ओंठ और हाथ के बी बारीक-सा फासला छोड़ना होता है. इसे पढ़कर वह हँसोड़ बोला, ‘‘यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सूचना है मिस्टर योस्सी. इसे हृदयंगम करें आप. जब आप अस्सी वर्ष की स्त्रियों से शुरू होंगे तब यह सूचना काम आएगी और मिस्टर योस्सी, आप इतने शरीफ आदमी मालूम होते हैं कि अट्ठारह वर्ष वालियों से तो क्या ही शुरू होंगे. और हाँ, मिस्टर योस्सी, इस पुस्तिका में लिखा है कि आपके ओंठों और स्त्री की हथेली के बीच कागज जितनी मोटाई का फासला रहे. आप टायलेट पेपर का एक रोल साथ रखा करें मिस्टर योस्सी, सूक्ष्म, नाप-जोख अन्दाजे से करना निरापद नहीं.’’

ठहाके का भागीदार बनने के बाद मैंने इसी पुस्तिका से प्राप्त सूचना के आधार पर फतवा दिया, ‘‘आप लोग बवेरिया के हैं, जर्मनी के नहीं.’’ 

इस बार ठहाका नहीं लगा. केवल मुस्कराहटें खिलीं. सब तो नहीं, अधिकतर बवेरिया के ही थे और वह हँसोड़ तो बवेरिया के भी हृदय-देश का. बवेरिया, जर्मनी का आल्प (हिमपर्वत) क्षेत्र है और इसके निवासी ज्यादा बोलने वाले, ज्यादा रंगीले, ज्यादा नाटकीय माने जाते हैं.


(जारी)

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