Monday, February 15, 2016

मिस्टर योस्सी की पश्चिमी जर्मनी यात्रा – 4


(पिछली क़िस्त से आगे)

फ्रांकफुर्त्त से हाइडलबर्ग की रेलयात्रा एक घण्टे की है. फ्रांकफुर्त्त जर्मन वाणिज्य-व्यवसाय का विराट केन्द्र है उधर हाइडलबर्ग शान्त एकान्त मध्ययुगीन विद्यापीठ और यह वापसी कुल साठ मिनट में होती है लेकिन इतने क्रमशः कि पता नहीं चलता कब हो गई. जर्मनी के अन्य भागों में भी रेलयात्रा करते हुए मुझे यह प्रतीति हुई कि शहर-गाँव-कस्बा खेत कारखाना जंगल सब यहाँ एक दूसरे से सटा हुआ है और इनमें कोई इतना भारी भेद नहीं है कि सहसा आपको बोध हो. भारत में केरल में यात्रा करते हुए आपको कुछ-कुछ ऐसी ही अनुभूति होती है. केरल की तरह पश्चिम जर्मनी भी घना बसा हुआ है. (कुल आबादी 6 करोड़ 13 लाख घनत्व 247 प्रति वर्ग किलोमीटर) और पश्चिम जर्मनी के निवासी भी मुख्यतः मध्यमवर्गीय हैं. इतनी आबादी के बावजूद वहाँ की आधी से ज्यादा जमीन कृषि में लगी हुई है (जबकि आबादी का कुल 6 प्रतिशत कृषि-वन जीवी है और सो भी सरकारी प्रोत्साहन से) और बीस प्रतिशत जमीन आज भी जंगलों से ढकी है. जिस जर्मन के भी मकान के आसपास थोड़ी जमीन होती है वह उसमें बागवानी जरूर करता है और हर जर्मन गृहिणी अपने घर की खिडकियों-झरोखों पर छोटे बड़े गमलों से अलग बगीचा बनाती है.

 महानगरों के फ्लैटों तक में भीतर दस-बारह गमले होना आम-सी बात है. कोई आश्चर्य नहीं जो इतनी हरियाली में औद्योगिक केन्द्र भी औद्योगिक न लगते हों. प्रदूषण के प्रति जर्मनी के लोग बहुत चिन्तित और सजग हैं. उन्हें दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हर चीज नए सिरे से बनाने का अवसर मिला है इसलिए वे अपने कल-कारखानों को ऐसा रूप दे सके हैं कि उनसे गन्दगी न फैले और वे सैरे में बहुत खूबसूरती से खप जाएँ. फ्रांकफुर्त्त हाइडलबर्ग रेलमार्ग के इर्द-गिर्द ट्रैक्टर और ट्रकबनाने वाला विख्यात मानहाइम उद्योग-केन्द्र है लेकिन उसके पास से गुजरते हुए यह अनुभूति ही नहीं होती कि धुएँ और लोहे-लक्कड़ की सनीचरी दुनिया से होकर निकल रहे हैं.

हाइडलबर्ग बाहनहोफ (स्टेशन) में ही अच्छा-खासा बाजार है. एरिका यहाँ की किताबों की दुकान में डोरिस लेसिंग का उपन्यास समर बिफोर डार्कढूँढ़ने लगीं जिसका मैंने उनसे जिक्र किया था और जिसे लेसिंग की प्रशंसिका होने के नाते वह तुरन्त खरीदना-पढ़ना चाहती थीं. उपन्यास उन्हें मिला नहीं. वह गुलदस्ता अलबत्ता मेरे लिए खरीद लाईं. मैंने उनसे कहा कि मैं आपके लिए कोई उपहार नहीं लाया हूँ क्योंकि मुझे बताया गया था कि जर्मन लोग उपहार देने लेने में विश्वास नहीं करते. वह बोलीं, ‘‘यह उपहार मैं आपको उस संस्था की ओर से दे रही हूँ, जिसने मुझे आपकी मेजबानी के लिए नियुक्त किया है, इसलिए जवाबी उपहार की कोई जरूरत नहीं है. लेकिन जर्मनों के बारे में आपको और क्या-क्या बताया गया है यह मैं जरूर जानना चाहूँगी.’’

जवाब में मैंने एरिका को ब्रीफकेस में से वही पुस्तिका निकालकर दी. पलट-पढ़कर वह बहुत हँसीं. फिर बोलीं, ‘‘किसी भी देश के लोग स्वयं अपने को कितना कम जानते हैं. कोई भी व्यक्ति अपने को कितना कम जानता है ! दूसरों को बताना होता है और दूसरे बताते हैं तो लगता है अरे हाँ ऐसा तो है लेकिन फिर भी मन हठ करता है कि ठीक ऐसा नहीं है, गलत समझे हैं वे.’’

स्टेशन से होटल जाते हुए नेकार नदी के दोनों ओर वनाच्छादित पहाड़ियों पर बसे हुए हाइडलबर्ग कस्बे का नजारा किया. जाड़ों की शुरुआत का जंगल-ललछौहें-सुनहरे पत्ते, कुछ टँगे हुए, कुछ गिरे हुए. पतली-सी नदी पुराना सा पुल. मध्ययुगीन इमारतें. घुमावदार सड़कें. पत्थरों से पटे प्रांगण वाले बाजार. एक भव्य दुर्ग-प्रासाद. सब कुछ बहुत साफ-सुथरा धुला-खिला (सफाई के खब्त में जर्मन लोग सड़कें बाकायदा धोने वाले स्वीडनवासियों के भाईबन्द हैं).

‘‘कैसा लग रहा है हाइडलबर्ग ?’’ एरिका ने जिज्ञासा की.

‘‘बहुत सुन्दर है.’’ मैंने कहा, ‘‘पढ़ा-लिखा होता तो यहीं विश्वविद्यालय में नौकरी ढूँढ़ लेता.’’
‘‘सुन्दरता देखने के लिए वसन्त में आए होते.’’

‘‘पतझड़ का भी तो अपना एक सौन्दर्य है.’’

‘‘हाँ !’’ एरिका मुस्कराईं, ‘‘और आप अधेड़ों को तो वह नजर आना ही चाहिए.’’

घुमावदार सड़क से ऊपर चढ़ते हुए हम एक मध्ययुगीन हवेली में पहुँचे यहाँ कभी छात्रावास और विद्यालय थे. जिन्होंने इसे होटल का रूप दिया है उनकी कोशिश यही रही है कि अब भी यह अगले जमाने का विद्यालय ही नजर आए. वही बेंचें, कुर्सियाँ, डेस्क. वही जगह-जगह सजावटी आखरों में लिखे आप्त वचन. छोटा सा होटल. सराय वाली आत्मीयता.

यूरोप में सर्वत्र ऐसे परम्परा परोसने वाले छोटे होटल हैं जिनमें परम्परा के नाम पर सैलानी से लगभग उतना ही पैसा ले लिया जाता है जितना तीन-तारा पाँच-तारा होटलों में. एरिका का प्रस्ताव था कि आप आराम कर लें और दो बजे मुझे लाबी में मिलें. मेरा आग्रह था कि जब यहाँ कुल दो दिन रहना है और इसी बीच फ्रांकफुर्त्त भी घूमना है तब आराम करने की कोई जरूरत नहीं. आध घण्टे बाद चलते हैं.

मगर मुझे जरूरत है !’’ एरिका बोलीं, ‘‘मैं सवेरे चार बजे उठी थी कि पति के लिए खाना बनाकर रख दूँ. अपने गाँव से हाइडलबर्ग पहुँचूँ कार से और फिर ट्रेन पकड़कर फ्रांकफुर्त्त पहुँचूँ. चलिए-आपकी बात पर इस जरूरत को अनदेखा भी कर दूँ, लेकिन आध घण्टे में मैं नहाकर तैयार नहीं हो सकती. अगर मर्द को तैयार होने में आध घण्टा लगता है तो सामाजिक गणित के अनुसार एक औरत को कितना लगेगा ? घण्टा ?’’


नहा-धोकर तैयार हुआ और कपड़े पहनने से पहले थोड़ी देर आराम करने के इरादे से बिछौने पर लेट गया. कमरे की दीवार पर टँगे कजरारे मूँछों वाले किन्हीं महानुभाव का फोटो देखते-देखते मुझे झपकी आई फिर नींद तभी टूटी जबफोन की घण्टी बजी. मालूम हुआ कि एरिका आधे घण्टे से लाबी में मेरी प्रतीक्षा कर रही हैं.

एरिका ने मुझे कुछ इस नजर से देखा मानो कहना चाह रही हों कि आप लोग भी बस हद ही करते हैं. घूमने के लिए वह बेहद सजी-सँवरी थी. सम्पन्न देशों की स्त्री साज-सज्जा और पहनावे पर कितना समय साधन खर्च करने को बाध्य हैं. 

सवाल यह था कि मिस्टर योस्सी (जोशी का यह जर्मन उच्चारण मुझे तब तक मान्य हो चुका था) कहाँ का भोजन पसन्द करते हैं ? एरिका के (और पुस्तिका के भी !) अनुसार जर्मन लोगों को जर्मन भोजन विशेष प्रिय नहीं है और जर्मन नगरों में दुनिया के सभी प्रमुख देशों का भोजन परोसने वाले रेस्तरां मिल जाते हैं-भारतीय भोजन भी कई जगह उपलब्ध है. इतालवी फ्रांसीसी, चीनी और मेक्सिकोई भोजन जर्मनों को विशेष प्रिय है. एरिका को मिस्टर योस्सी का यह जवाब कतई पसन्द नहीं आया कि भोजन के मामले में मेरी कोई पसन्द नापसन्द नहीं है, जैसा आप चाहें. एरिका ने जानना चाहा कि पुरबिया लोग इतने अज्ञेय क्यों बनना चाहते हैं ? एरिका के अनुसार भारतीय तो फिर भी गनीमत है कि कभी हाँ-ना ऐसा कह देते हैं, चीनी-जापनी तो बस लगातार मुस्कराकर और सिर हिलाकर काम चलाते हैं !

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