जलसा से शेफ़ाली फ्रॉस्ट की कविताएं – 3
फ़ोटो गार्जियन से साभार |
आत्महत्या
के विरुद्ध
१ .
इस
गढ़ी हुई दास्तान को
काट
सकता है वो कौतूहल,
जो
पन्ने से सरक,
अब
हाशिये पर अटक गया है ?
यह
डरी हुई भाषा
गा
सकती है वो गीत,
जो
पिटा हुआ हाथ,
आख़री
हरारत से लिख गया है ?
बची
है इस शहर में क्या
वो
कविता नयी ?
लड़
रही है, असहाय,
किताबों
में कहीं ?
उसे
लाया जाए
सुनाया
जाए ...
२ .
क्या
संवेदना का बीज,
इस
डामर से पटे शहर में
बच
गया है कहीं ?
गिन
रहा है सांसें,
सड़
रहा है लड़ता हुआ,
आख़री
गोदामों में कहीं ?
उसे
ढूँढा जाये,
लाया
जाये,
फुटपाथ
का वो कोना
जो
मरने से बच गया है कहीं,
वहां
लगाया जाये,
उगाया
जाये…
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