Thursday, February 4, 2016

जो मरने से बच गया है कहीं, वहां उगाया जाये

जलसा से शेफ़ाली फ्रॉस्ट की कविताएं – 3


फ़ोटो गार्जियन से साभार 
           
आत्महत्या के विरुद्ध 

 .

इस गढ़ी हुई दास्तान को 
काट सकता है वो कौतूहल,
जो पन्ने से सरक
अब हाशिये पर अटक गया है ?

यह डरी हुई भाषा 
गा सकती है वो गीत,
जो पिटा हुआ हाथ,  
आख़री हरारत से लिख गया है ?

बची है इस शहर में क्या
वो कविता नयी ?
लड़ रही है, असहाय
किताबों में कहीं
उसे लाया जाए 
सुनाया जाए ... 

२ .

क्या संवेदना का बीज,
इस डामर से पटे शहर में   
बच गया है कहीं ?
गिन रहा है सांसें,  
सड़ रहा है लड़ता हुआ,
आख़री गोदामों में कहीं ?

उसे ढूँढा जाये,
लाया जाये,
फुटपाथ का वो कोना
जो मरने से बच गया है कहीं,
वहां लगाया जाये

उगाया जाये

No comments: