जलसा से शेफ़ाली फ्रॉस्ट की कविताएं – 6
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फ़ोटो टाइम्स ऑफ़ इण्डिया से साभार |
खाड़ी
का युद्ध और चौराहा
गरज
रहे हैं विमान पुष्पक
दमदार
ट्रकों की गोद में,
बह
रहा है क्षुधित टन्कियों से
गाढ़े
पुरषत्व का सन्देश,
उतना
ही काला और लेसदार,
जितना
हज़ार शेषनागों का
रिसता
हुआ हाथ,
"मिशन
अकंपलिश्ड!
ओके
टाटा !"
तोड़ती
है सम्मोहन
त्वरित
इंजन तले
टैम्पोवाले
की गुनगुनाती हुई लाश,
लेटी
है स्खलित
समुंदर
में पौरुष की,
सिग्नल
वाले चौराहे पर लड़ रहा है शहर
उसका,
किसका
?
सिहर
रहे हैं सड़क पर बुरी नज़र वालों के मुहं,
टपक
रहे हैं फ़ुटपाथ पर
जले
हुए बादलों के अनाथ,
भरती
है तेल गालों में फिर-फिर
पुरुषोत्तमो
की उदार मुस्कान,
कर
देता है समर्पण हँस-हँस
टैम्पोवाला
ससम्मान
उफ़न
रहा है फुटपाथ पर लेकिन,
फ़ोन
चार्जर बेचने वाला, आख़री
लड़का,
बिखरते
शहर की बेखबर परेशानियों को मारता हुआ लात,
बौखला
के खोलता है शीशा
हर
दौड़ती हुई कार का,
"यहीं
तो था?"
कहाँ
गया वो जहाज
जिसमे
बैठ उसे
वापस
घर जाना था?
नहा
रही है हारी हुई एम्बुलैन्स तले
शनि
का दान मांगने वाली आख़री लड़की,
बदलती
है पट्टी पुराने नासूर की,
उबल
रहा है खून,
काला
और लेसदार, उतना
ही,
जितना
हज़ार शेषनागों का
रिसता
हुआ हाथ,
सींच
रही है पुरुषोत्तमो की सड़क,
फुटपाथ
की आख़री क़तार,
लड़
पड़ेगी शायद,
अगर
रोने दिया उसे
आज !
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