Sunday, February 7, 2016

मजाज़ और मजाज़ - 7

(पिछली क़िस्त से आगे)


फिर यह इश्क़ परवान चढ़ा तो मजाज़ ने एक नज़्म कही जिसकी शुरुआत में वे कहते हैं – “बताऊँ क्या तुझे ऐ हमनशीं! किससे मोहब्बत है”. अपनी प्रेयसी के मिलन की एक रात का ज़िक्र मजाज़ आनंदविभोर होते हुए करते हैं –

देखना जज़्बे मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात

और क्या चाहिय अब ये दिले मजरूह तुझे
उसने देखा तो बन्दाज़े दीगर आज की रात

नूर ही नूर है किस सिम्त उठाऊं आँखें
हुस्न ही हुस्न है ता हद-ए-नज़र आज की रात

अल्लाह अल्लाह वो पेशानीए-सीमीं का जमाल
रह गयी जम के सितारों की नज़र आज की रात

नग़मा-ओ-मै का ये तूफ़ान-ए-तरब क्या कहिये
मेरा घर बन गया ख़ैयाम का घर आज की रात

अपनी रफअत पे जो नाजां है तो नाजां ही रहे
कह दो अंजुम से की देखे न इधर आज की रात

उनके अलताफ का इतना ही फसूं काफी है
कम है पहले से बहुत दर्दे जिगर आज की रात

मजाज़ की प्रेयसी न तो पारिवारिक प्रतिष्ठा के मोह का त्याग कर सकी और न सामाजिक बन्धनों को ही तोड़ सकी. वह मजाज़ के साथ कदम से कदम मिलाकर जीवनसंगिनी बनने की हैसियत से चलने को प्रस्तुत तो न हुई और प्रेम-डगर से वापस लौट गयी. बेचारा मजाज़ अकेला रह गया. वह चाहता तो अगले वक्तों के शाइरों की तरह माशूक़ की बेवफाई और हरजाईपन का ढिंढोरा पीट सकता था लेकिन मजाज़ तो मजाज़ था. उसने अपनी प्रेमिका की मजबूरियों को समझा और अपने उस पल के जज्बातों को यूं ज़बान दी –

मैं आहें भर नहीं सकता कि नगमे गा नहीं सकता
सकूं लेकिन मेरे दिल को मयस्सर आ नहीं सकता

अपनी प्रेयसी की मजबूरियों का कारण मजाज़ के सामाजिक व्यवस्था और परम्परागत बन्धनों को माना –

मुझे शिकवा नहीं दुनिया की उन ज़ुहराज़बीनों से
हुई जिनसे न मेरे शौके-रुसवा की पज़ीराई

उस प्रेमिका से सम्बन्ध टूटने के बाद मजाज़ ने तमाम नज्में लिखीं जिनमें मुख्य रूप से ‘एक ग़मगीन याद’, ‘तिफ्ली के ख्वाब’ और ‘ऐतराफ़’ थीं. विपत्ति की बाढ़ मजाज़ को बहाकर नहीं ले गयी थी, वो खुद ही उससे खेलने को भंवर में कूद पड़े थे. वे चाहते तो स्वयं भी हाथ-पाँव मारकर किनारे लग सकते थे. उनके हितैषी-मित्र भी सहारा देने को तत्पर रहे किन्तु वे किनारे पर आने के बजाय मौजों के थपेड़े खाते हुए भी यही जिद पकडे रहे –

दरिया की ज़िन्दगी पर सदके हज़ार जानें
मुझको नहीं गवारा साहिल की मौत मरना – जिगर मुरादाबादी

जब किश्ती साबित-ओ-सालिम थी, साहिल की तमन्ना किसको थी
अब ऐसी शिकस्ता किश्ती पर साहिल की तमन्ना कौन करे – जज़्बी

मजाज़ इश्क़ में कामयाब न हुए तो उन्होंने शराब को मुंह लगा लिया. मानो पोखर से निकले तो तालाब में कूद लगा दी. वे इश्क़ की कड़वाहट को शराब की तल्खी से दूर करना चाहते थे. गोया प्रेम की ज्वाला की जलन को शराब के पानी से शांत करना चाहते हों. नतीजे में उनका विकृत हो जाने के कारण दो बार पागलखाने भी रहना पड़ा और भरी- जवानी में केवल छियालीस की उम्र में जिस दयनीय स्थिति में उनका निधन हुस, सुनकर दुश्मनों ने भी कान पर हाथ रख लिए. उनको बहुत नज़दीक से जानने वाली और मौत के समय उनके नज़दीक उपस्थित रहनेवाली इस्मत चुगताई ने मजाज़ की शराबखोरी का बहुत ही करुणाजनक चित्र प्रस्तुत किया  है –

(जारी)

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