जलसा से शेफ़ाली फ्रॉस्ट की कविताएं – 2
फ़ोटो - http://www.brookings.in/ से साभार |
मृत्युगीत
- शेफ़ाली फ्रॉस्ट
मदकाल
सृजन का बीत चुका,
गढ़
चुका एक सम्मत विशेष,
मधुमिश्र
वृन्द अब उखड़ गया,
दृढ
बध्य ताल पर नृत्य एक,
नतकर्तल
पर सहमत जन की
वीभत्स
शून्य का त्वरित नाद,
अब
दृश्य अनेक पर भाव एक,
अनुभव
अनेक, अनुभाव
एक
इकरंगी
अस्ताचल में
वृत्त
नारंगी अब फैल चुका,
श्वेत
एक, अब
श्याम एक,
अधश्वेत
एक, अध्श्याम
एक,
चौकोर
धरा पर आवर्तित
सरकटा
सूर्य और चाँद एक,
संपूर्ण
विलय, सम्पूर्ण
प्रलय
विध्वंस
स्मृति, परिणाम
एक
कृशभार
सिंधु का रन्ध्र रन्ध्र
लील
चुका अब कीच पुष्प,
निर्जल
लहरों पर उलट उलट
कामाग्निहीन, कामांध भुजंग
पीता
अपना ही रंग विशेष,
गरल
शेष, बस वमन
शेष,
मुहं
फाड़ खड़ी बस क्षुधा शेष
दिव्य
पुलक में हुड़क हुड़क
मूष
गीध गीदड़ सियार,
भूखी
सड़कों में सड़प सड़प
धरते
स्वअनुज माँस पर दाढ़,
स्नेहिल
जिह्वा का दन्तप्रवण
हन्त-मुग्ध
अनुराग शेष,
मानुषविहीन
भयभीत निशा,
स्वजातिभक्ष
उन्माद शेष,
टंकार
शेष, अट्ठहास
शेष,
अब
अंत शेष,
बस
अंत शेष !
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