Saturday, March 19, 2016

भिगोया दिलबरों ने जब नज़ीर अपने को होली में

बाबा नज़ीर अकबराबादी का होली पर एक और कलाम -

फ़ोटो ibnlive.com से साभार 
बुतों के ज़र्द पैराहन में इत्र चम्पा जब महका
हुआ नक़्शा अयाँ होली की क्या-क्या रस्म और रह का

गुलाल आलूदः गुलचहरों के वस्फ़े रुख में निकले हैं
मज़ा क्या-क्या ज़रीरे कल्क से बुलबुल की चह-चह का

गुलाबी आँखड़ियों के हर निगाह से जाम मिल पीकर
कोई खरखुश, कोई बेख़ुद, कोई लोटा, कोई बहका

खिडकवाँ रंग खूबाँ पर अज़ब शोखी दिखाता है
कभी कुछ ताज़गी वह, वह कभी अंदाज़ रह-रह का

भिगोया दिलबरों ने जब 'नज़ीर' अपने को होली में
तो क्या क्या तालियों का ग़ुल हुआ और शोर क़ह क़ह का

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