Sunday, March 13, 2016

खिल गए ज़ख्म कोई फूल खिले न खिले


खिल गए ज़ख्म कोई फूल खिले न खिले – अख्तर सरदार

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ 13 फरवरी 1911 को सियालकोट में पैदा हुए. सियालकोट को ये एज़ाज़ हासिल है कि उर्दू अदब के दो नामवर ,मारूफ़ ,आलमी शौहरत याफ़ता शोअरा का ताल्लुक़ इस शहर से है. एक अल्लामा मुहम्मद इक़बाल और दूसरे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के बारे में ये कहा जा सकता है कि उनके ज़िक्र के बनां उर्दू अदब की तारीख अधूरी है.

दुनियाए अदब के एक जगमगाते सितारे, शायर--इन्क़िलाब आठ किताबों के मुसन्निफ़, दर्जनों मशहूर नग़मात के ख़ालिक़, इंतिहापसंदी के रद्द का शायर फ़ैज़ का मुख़्तसर तआरुफ़ है. आपको इबतिदाई तालीम हासिल करने का शरफ़ मौलवी शमश उल-हक़ से भी हुआ जो अल्लामा मुहम्मद इक़बाल के भी उस्ताद थे. आपने अरबी और फ़ारसी भी स्कूल से सीखी.बी ए गर्वनमैंट कॉलेज लाहौर से किया और इसी कॉलेज से 1932 मैं एम.ए. इंग्लिश किया. इस के बाद अरबी में एम-ए ओरिएण्टल कॉलेज लाहौर से किया. पी एचडी की तैयारी ना कर सके उसे छोड़ दिया.

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ को सतरह बरस की उम्र में एक अफ़्ग़ानी लड़की से प्यार हुआ जिसे वो हासिल ना कर सके उनकी किताब नक़्श फ़र्यादी इश्क़ में नाकामी की शायरी से भरी पड़ी है.इस इशक़ की नाकामी से दो काम हुए अव्वल उर्दू अदब को इतना बड़ा शायर मिला और दुव्वम फ़ैज़ की रग-रग में मायूसी उतर गई जिसने पूरी ज़िंदगी उनका पीछा ना छोड़ा.उनको यूं तो शायर इन्क़िलाब कहा जाता है, लेकिन उनकी शायरी में यासियत (मायूसी) ज़्यादा है,
फ़ैज़ की रुमानवी तबीयत की हुस्नपरस्ती की, हुस्न की कशिश ने उनको एलिस कैथरीन जो कि एम-ए ओ कॉलेज अमृतसर के प्रिंसिपल की साली थीं से मिलवाया फिर उसी के हो गए, उस को दिल दिया और उसका अंजाम शादी हुआ. एलिस कैथरीन ने इस्लाम क़बूल किया तो उस का इस्लामी नाम कुलसूम रखा गया. लेकिन एलिस को ये नाम पसंद ना आया इसलिए उसने अपने लिए एलिस ही कहलाना पसंद किया और इसी नाम से शोहरत हासिल की बहुत कम लोग जानते हैं कि उस का नाम कुलसूम रखा गया था.

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ फ़ौज में 1942 में शामिल हुए, और 1944 मैं लैफ़्टीनैंट कर्नल के ओहदे पर तरक़्क़ी पा गए. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने 1947 को फ़ौज से इस्तीफा दे दिया, लाहौर आए, फ़ैज़ ने फ़ौज को छोड़कर सहाफ़त में क़दम रखा और पाकिस्तान टाइम, इमरोज़, लैल व वनहार में काम किया. रावलपिंडी साज़िश केस में मुलव्वस होने के शुबा में उनको 9 मार्च 1951 को गिरफ़्तार कर लिया गया. चार साल आपने जेल में गुज़ारे. 2 अप्रैल 1955 को रिहा कर दिया गया. ज़िंदाँनामा की बहुत सी ग़ज़लें इसी दौर की यादगार हैं.

वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र ना था
वो बात उनको बहुत नागवार गुज़री है

ज़िंदान ने फ़ैज़ को मशहूर शायर बनाया.

अहमद नदीम क़ासिमी का उनके बारे में कहना है कि फ़ैज़ उन शाइरों में से नहीं जो ख़ला में शायरी करते हैं, फ़ैज़ ने तो आज की दुनिया के जुमला सयासी, समाजी, इक़तिसादी, मुआमलात को सामने रखकर शायरी की है.

तूने देखी है वो पेशानी ,वो रुख़्सार वो होंट
ज़िंदगी जिनके तसव्वुर में लुटा दी हमने
कहीं तो होगा शब मस्त मौज का साहिल
कहीं तो जा के रुकेगा सफ़ीना-- ग़म--दिल

ग़म --दुनिया के शायर ने फ़र्सूदा रवायात से इन्हिराफ़ किया, बग़ावत की, और शायर इन्क़िलाब कहलाया.

फ़ैज़ की शायरी उनके बारे में है, जो कामियाबी के लिए पूरी ज़िंदगी गुज़ार देते हैं, लेकिन कामियाबी कहीं नज़र नहीं आती, ऐसे लोग एक पल के सुकून के लिए पूरी उम्र बे-सुकूनी में गुज़ार देते हैं, सिसक-सिसक कर जीना जिनका मुक़द्दर होता है, मज़दूर, रेड़ी वाले, दीहाड़ीदार अफ़राद के बारे में उन्होंने बहुत ग़ज़लें लिखें.  ऐसे ही मौक़ा पर कही गई एक और ग़ज़ल के शेर देखें, और इस में अवाम के दुखों को कैसे बयाँ किया गया है. और सब अच्छा कहने वालों की बाबत कितने करब का इज़हार है.

आ गई फसल--सुकून चाक गरेबाँ वालों
सिल गए होंट, कोई ज़ख़म सिले ना सिले
दोस्तो बज़म सजाओ कि बहार आई है
खुल गए ज़ख्म, कोई फूल खिले ना खुले

फ़ैज़ को चार बार नोबल इनाम के लिए नामज़द किया गया. लेनिन पीस प्राइज़ 1962 को हासिल किया.फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने निशान इमतियाज़, निगार ऐवार्ड, भी हासिल किया.

फ़ैज़ की मजमूई शायरी सियासत का रंग लिए हुए है. कहीं कहीं इशक़ व मुहब्बत झलकती है. उनकी शायरी में इन्सानियत से मुहब्बत, दूसरों का दर्द ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरीयात, ग़ुर्बत, महरूमी, उनको बेचैन रखती थी उनके ये अशआर देखें किस करब से कहे गए होंगे -

आजिज़ी सीखी, ग़रीबों की हिमायत सीखी
यास व हिरमाँ के, दुख-दर्द के मानी सीखे
ज़ेर-दस्तों के मसाइब को समझा, सीखा
सर्द आहों के, रुख--ज़र्द के, मानी सीखे


फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के दिल में 20 नवंबर को तकलीफ़ हुई जो बढ़ती ही गई, शदीद तकलीफ़ की वजह से उनको मेव अस्पताल दाख़िल करवाया गया जहां 21 नवंबर 1984 को उनका इंतिक़ाल हो गया. और मॉडल टाउन लाहौर के क़ब्रिस्तान में सुपर ख़ाक कर दिया गया.

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