“उस भावना को महसूस करना जो उन लोगों से आती है जिन्हें हम नहीं जानते ...
हमारे अस्तित्व की सीमा को विस्तार देती है और सभी जीवित चीज़ों को आपस में जोड़ती
है.”
-पाब्लो नेरुदा
आदमी कला क्यों रचता है और कैसे उसका
आनंद उठा पाता है - यह सवाल हमारे अनुभवों की एक स्थाई छाया की तरह हमें उस समय से
लगातार परेशान करता रहा है जब हम गुफाओं
में रहा करते थे. 1950 के अपने एक लेख 'बचपन और कविता' में प्रिय कवि और
नोबेल विजेता पाब्लो नेरूदा ने बेजोड़ शालीनता के साथ इस सवाल का उत्तर दिया है.
नेरुदा अपने बचपन के एक किस्से का
ज़िक्र करते हैं :
युवा पाब्लो नेरुदा |
" बचपन में एक दफ़ा तेमूको के
अपने घर के पिछवाड़े में जब मैं अपने संसार की नन्हीं और सूक्ष्म चीज़ों को उलट-पुलट
रहा था मुझे चारदीवारी के एक बोर्ड में एक छेद नज़र आया. मैंने छेद में आँख लगाकर
देखा तो वही लैंडस्केप नज़र आया जो हमारे घर के पीछे हुआ करता था - परित्यक्त और
जंगल से भरा हुआ. मैं कुछ कदम पीछे को हट गया क्योंकि मुझे अजीब सा अहसास हो रहा
था कि कोई चीज़ घटने वाली है. अचानक एक हाथ प्रकट हुआ - करीब करीब मेरी ही उम्र
वाले एक लड़के का छोटा सा हाथ. जब तक मैं उसके पास पहुंचा वह हाथ गायब हो चुका था
और उसकी जगह एक शानदार सफ़ेद खिलौना भेड़ ने ले ली थी."
"भेड़ की ऊन फीकी पड़ चुकी थी. उसके
पहिये निकल चुके थे. इस सब ने उसे और भी ज़्यादा वास्तविक बना दिया था. मैंने इतनी
शानदार भेड़ कभी नहीं देखी थी. मैंने छेद में आँख लगाकर देखा लेकिन वह लड़का गायब हो
चुका था. मैं घर के भीतर गया और वहां से अपना एक ख़ज़ाना बाहर निकाल लाया - खुशबू और लीसे से भरपूर चीड़ का एक ठीठा जो मुझे
बेतरह पसंद था. मैंने उसे उसी जगह पर रखा और भेड़ को अपने साथ ले कर चल दिया."
नेरुदा ने न वह हाथ दुबारा देखा न वह
लड़का जिसका वह हाथ था. कुछ सालों बाद आग में जलकर वह खिलौना भेड़ भी ख़त्म हो गयी.
लेकिन लड़कपन का वह अनुभव जिसकी सांकेतिकता में एक गहरी सादगी थी, उनके लिए जीवन भर
की एक सीख बन गया - जिस पल उस बच्चे ने फीकी ऊन वाली उस भेड़ को थामा था उसी पल
उसने पारस्परिकता की उस चाह को थाम लिया था जो हमें कला का निर्माण करने को मजबूर
करती है.
"बंधुओं की अंतरंगता को महसूस
करना जीवन की एक श्रेष्ठ चीज़ है. उन लोगों के प्यार को महसूस करना जिन्हें हम
प्यार करते हैं, एक ऐसी आग की तरह होता है जो हमारे जीवन के लिए भोजन है. लेकिन उस
भावना को महसूस करना जो उन लोगों से आती है जिन्हें हम नहीं जानते, उन अनजानों से
जो हमारी नींद और हमारे अकेलेपन की पहरेदारी करते हैं, हमारे खतरों और हमारी
कमजोरियों से हमारी हिफाज़त करते हैं - वह एक ऐसी चीज़ है जो कहीं ज़्यादा महान और
सुन्दर होती है क्योंकि वह हमारे अस्तित्व की सीमा को विस्तार देती है और सभी
जीवित चीज़ों को आपस में जोड़ती है."
"उस लेनदेन के बाद मुझे पहली बार
एक मूल्यवान विचार आया - कि सारी मानवता किसी न किसी तरह से इकठ्ठा एक है ... आपको
इस बात पर आश्चर्य नहीं करना चाहिये कि मैंने मानवीय भाईचारे के बदले में एक लीसेदार,
धरती जैसी और खुशबू से भरी एक चीज़ देने की कोशिश की. जिस तरह मैंने चारदीवारी के
पास चीड़ के उस ठीठे को रख कर छोड़ दिया था, तब से उसी तरह मैंने इतने सारे लोगों के
दरवाजों पर अपने शब्दों को रख छोड़ा है जो मेरे लिए अजनबी थे, कैद में थे या उनका शिकार
किया जा रहा था या जो अकेले थे."
1966 में रॉबर्ट ब्लाई को दिए गए एक
इंटरव्यू में नेरूदा ने इस घटना का ज़िक्र करते हुए बताया है कि कैसे उसके बाद उनके
रचनात्मक अनुभव को आकार मिलना शुरू हुआ. इत्तफाकन यह इंटरव्यू 'द लैम्ब एंड ए
पाइनकोन' के नाम से प्रकाशित हुआ था. नेरुदा की कविता की एक पंक्ति है -
रहस्य से भरा हुआ - तलछट की तरह
गहरे
पैठ गया मेरे भीतर - तोहफों का यह लेनदेन -
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